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मारवाड़ का इतिहास
एक लेख मिला है । इस में की नारायण से विजयचन्द्र के पूर्व तक की पीढ़ियाँ भाटों के आधार पर लिखी हुई प्रतीत होती हैं । इसीसे वे लेखों की पीढ़ियों से नहीं मिलतीं। इस लेख में आगे लिखा है:
तस्माद्विजयचन्द्रोऽभूज्जयचन्द्रस्ततोऽभवत् । वरदायीसेननामा तत्पुत्रोऽतुलविक्रमः तदात्मजः सीतरामो रामभक्तिपरायणः । सीतरामस्य तनयो नृपचक्रशिरोमणिः । राजा सीह इति ख्यातः शौर्यवीर्यसमन्वितः ।
अर्थात्- - उसका पुत्र विजयचंद्र हुआ और विजयचन्द्र का जयचन्द्र । जयचन्द्र का पुत्र वरदायीसेन था और उसका सीतराम हुआ । इसी सीतराम का पुत्र सीहा था ।
इस लेख में जयचन्द्र के पुत्र का नाम हरिश्चन्द्र न देकर वरदायीसेन दिया है । इससे ज्ञात होता है कि या तो इस वंश का सम्बन्ध हरिश्चन्द्र के छोटे भाई वरदायीसेन से था या हमारे अनुमान के अनुसार हरिश्चन्द्र का ही उपनाम वरदायीसेन था । इसीसे उक्त लेख में हरिश्चन्द्र का नाम नहीं लिखा गया है।
कर्नल टॉड ने अपने इतिहास में सीहाजी को कहीं जयचन्द्र का पुत्र, कहीं भतीजा और कहीं पौत्र तथा सेतराम का भाई लिखा है । परन्तु मारवाड़ की ख्यातों और सीहाजी के वि० सं० १३३० के लेख में इन्हें सेतराम का पुत्र लिखा है ।
'आईने अकबरी' में लिखा है कि मोइजुद्दीन साम ( गोरी ) ने जब राय पिथोरा की लड़ाई से फुरसत पाई, तब वह कन्नौज के राजा जयचन्द के मुकाबले को चला । जयचन्द हार कर भागा और गङ्गा में डूब गया । उसका भतीजा सीहा भी, जो शम्साबाद में रहता था, बहुत से आदमियों के साथ मारा गया। इसके बाद सीहा के तीनों बेटे - सोनग, अश्वत्थामा (प्रासथान ) और अज गुजरात की तरफ जाते हुए पाली में आकर ठहरे। कुछ दिन बाद उन्होंने गोयलों से खेड़ छीन लिया । इसके बाद सोनग ने ईडर में और अज ने बगलाने में अपना अधिकार जमाया । ( भा० २, पृ० ५०७ । )
परन्तु सीहाजी का उस समय मारा जाना सिद्ध नहीं होता ।
१. जर्नल बङ्गाल एशियाटिक सोसाइटी ( ई. सन् १६२० ), भा० १६, पृ० २७६
२. ऐनाल्स ऐगड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० १०५ भा० २, पृ० ३० और भा० २, पृ० ६४०
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