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मारवाड़ का इतिहास हस्तलिखित पुस्तकें विद्यमान हैं। जिस प्रकार संस्कृत की पुस्तकों में वेद, पुराण, दर्शन, साहित्य, काव्य आदि सब विषयों की पुस्तकें होने पर भी योग विषयक ग्रन्थों की संख्या अधिक है, उसी प्रकार भाषा में भी अन्य विषयों के ग्रन्थों से योग-विषयक ग्रन्थ अधिक हैं । इसका कारण महाराजा मानसिंहजी का इस विषय से अधिक प्रेम होना ही सिद्ध होता है।
इस 'पुस्तकप्रकाश' में महाराजा जसवन्तसिंहजी प्रथम रचित ग्रन्थों का संग्रह होने से अनुमान होता है कि इस पुस्तकालय का सूत्रपात उनके समय ( अर्थात् विक्रम की १८ वीं शताब्दी के प्रारम्भ) से ही हो चुका था । वि० सं० १७७६ से १७८९ ( ई० स० १७१९ से १७३२) के बीच नकल किए गए महाभारत, पुराण और काव्य-ग्रन्थों से प्रकट होता है कि महाराजा अजितसिंहजी और महाराजा अभयसिंहजी के समय भी इस संग्रह में वृद्धि हुई थी। इसी प्रकार वल्लभ संप्रदायके ग्रन्थों की संख्या से पता चलता है कि इनका संग्रह महाराजा विजयसिंहजी के समय किया गया होगा । परंतु इसकी वास्तविक उन्नति महाराजा मानसिंहजी के समय ही हुई थी। ___ इसके अलावा 'पुस्तकप्रकाश' में जो लेखक नियत थे वे अन्य कार्य न होने पर वहां की पुस्तकों की नकलें तैयार किया करते थे। इससे इन नकलों की संख्या को मिला देने से संस्कृत पुस्तकों की संख्या १६७८ से ३०५७ और हिंदी पुस्तकों की संख्या १०६४ से १८४१ तक पहुंच जाती है । परंतु यह भी सम्भव है कि महाराजा मानसिंहजी की तरफ से समय-समय पर इस प्रकार तैयार की गई अनेक विषयों के ग्रन्थों की नकलें प्रेस के अभाव में विद्या प्रचार के लिये विद्वानों और विद्यार्थियों में बांटी जाती हों और इसीसे कुछ लेखक नियत किए गए हों। 'पुस्तकप्रकाश' में सब से पुरानी पुस्तक वि० सं० १४७२ ( ई० स १४१५) की लिखी हुई है।
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