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जोधपुर के राष्ट्रकूट ( राठोड़ ) नरेशों का धर्म ।
जोधपुर के राष्ट्रकूट ( राठोड़ ) नरेशों का धर्म ।
जोधपुर-नरेशों की कुलदेवी चामुण्डा है, जो प्राचीन विश्वास के अनुसार श्येन का रूप धर इनके राज्य की रक्षा करती है। इसी से इन राजाओं के झन्डे या निशान पर श्येन-पक्षी का चिह्न बना रहता है। परन्तु इन नरेशों ने समय-समय पर वैष्णव और शैव मतों को भी बड़ी श्रद्धा से आश्रय दिया था। जोधपुर नरेश महाराजा विजयसिंहजी परम वैष्णव थे। उनके राज्य समय जोधपुर नगर में मांस और मदिरा का प्रचार बिलकुल बंद करदिया गया था । इस आज्ञा के उल्लंघन करने वाले को, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, कठोर से कठोरतर दण्ड दिया जाता था । इनके दिए अनेक गाँव इस समय तक भी वल्लभसंप्रदाय वालों के अधिकार में चले आते हैं।
महाराजा मानसिंह जी के समय शैवैमत के अङ्गभूत नाथ-संप्रदाय का विशेष प्रभाव रहा और उक्त संप्रदाय के आचार्य उस समय में मिले अनेक गाँवों आदि का उपभोग अब तक करते चले आरहे हैं ।
इन राठोड़ नरेशों के समय उपर्युक्त पौराणिक मतों के अलावा जैन मत को भी अच्छा अवलम्ब मिला था। इसी से मारवाड़ में इस संप्रदाय का अच्छा प्रचार चला आता है। १. उस समय पशुवध का निषेध होने से कसाइयों को मकानों के छतों की पट्टियां ( छीनें )
और बड़े-बड़े पत्थर उठाने का काम सौंपा गया था । उनके वंशज इस समय तक भी
वही काम करते हैं और 'चवालिये' कहलाते हैं । २. महाराज ने पाउवा ठाकुर जैतसिंह के इस प्राज्ञा का उल्लंघन करने पर उसे प्राण दण्ड
दिया था। ३. राजा शूरसिंहजी ने चांदपोल दरवाजे के बाहर रामेश्वर महादेव का मन्दिर बनवाया था।
उसके पुजारियों को राज्य की तरफ से जागीर मिली हुई है ।
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