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जोधपुर के राष्ट्रकूट नरेशों का विद्याप्रेम और उनकी दानशीलता ।
आपकी बघेल वंश की रानी रणछोडकुंवरि जी भी भक्ति-पूर्ण पदों के बनाने में प्रवीण थीं।
महाराजा तखतसिंहजी के उत्तराधिकारी महाराजा जसवन्तसिंहजी' द्वितीय के समय महामहोपाध्याय कविराजा मुरारिदान ने 'यशवन्त-यशो-भूषण' नाम का प्रन्थ लिखा था, और इसके संस्कृत और भाषा के दो-दो संस्करण तैयार किए गए थे। इस पर महाराजा ने कवि को लाख पसाव में पांच हजार रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर सम्मानित किया था ।
इनके अलावा इन नरेशों के समय अनेक कवियों ने इनकी प्रशंसा में सैंकड़ों गीत, कवित्त, दोहे आदि बनाए थे और इन्होंने भी अपनी गुण-ग्राहकता दिखलाने में कमी नहीं की थी। कई ऐसे भी अवसर आए थे जब कवि की एक छोटी सी उक्ति से प्रसन्न होकर इन नरेशों ने उन्हें अच्छी आय के अनेक गांव दे डाले थे । इन नरेशों की दान और मान में दी हुई सैंकड़ों जागीरें इस समय भी कवियों और वीरों के वंशजों के अधिकार में चली आती हैं ।
महाराजा मानसिंहजी ने काशी, नेपाल आदि अनेक नगरों से संस्कृत के और राजपूताने के अनेक स्थानों से डिंगल आदि भाषाओं के ग्रन्थ अथवा उनकी नकलें मँगवाकर जोधपुर के किले में 'पुस्तकप्रकाश' नामक पुस्तकालय की स्थापना की थी । यद्यपि उनके स्वर्गवास के बाद उसकी तरफ़ विशेष ध्यान नहीं दिया जाने से वहां की बहुतसी पुस्तकें इधर-उधर हो गई हैं, तथापि इस समय भी उसमें १६७८ संस्कृत की और १०९४ डिंगल आदि भाषाओं की
इन्हीं की समकालीन बीरां के बनाए कृषा--भक्ति से पूर्ण कुछ भजन मिलते हैं । परन्तु इसका जोधपुर राज-घराने से क्या संबंध था यह अज्ञात है।
(मारवाड़ी भजन सागर, कवियों की जीवनी, पृ० २१) १. महाराजा जसवन्तसिंहजी ( द्वितीय ) के छोटे भ्राता महाराजा प्रतापसिंहजी की भटियानी
रानी रत्नकुंवरिजी और महाराज किशोरसिंहजी की बघेल रानी विष्णुप्रसादकुंवरिजी
भी हरि-भक्ति-पूर्ण पद बनाने में कुशल थीं। बघेलीजी ने १ अवधविलास, २ कृष्णविलास और ३ राधा-रास-विलास नाम के ग्रन्थ बनाए थे ।
( मारवाड़ी भजन सागर, कवियों की जीवनी, पृ० ३५, १६ ) २. एक संक्षिप्त और दूसरा बड़ा ।
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