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लोगों में जो माप प्रवृत्ति है वह इस तरह-आठ यवोदर का एक अंगुल, चौबीस अंगुल का एक हाथ, चार हाथ का एक दण्ड, दो हजार दण्ड का एक कोश और चार कोश का एक योजन होता है। दस हाथ का एक वंश कहलाता है, बीस वंश का एक 'निवर्तन' कहलाता है और चार हाथ का एक क्षेत्र' कहलाता है। (६६६७)
मानं पल्योपमस्याथ तत्सागरोपमस्य च । वक्ष्ये विस्तरतः किञ्चित् श्रुत्त्वा श्रीगुरु सन्निधौ ॥६८॥ ....
अब पल्योपम तथा सागरोपम के विषय में कहा जाता है । वह भी इन दोनों के सम्बन्ध में गुरु महाराज के पास में जो कुछ सुना है वही यहां कहते हैं । (६८)
आद्यमुद्धारपल्यं स्यादद्धापल्यं द्वितीयकम् । . तृतीयं क्षेत्र पल्यं स्यादिति पल्योपमं त्रिधा ॥६६॥ .. एकैकं द्वि प्रकारं स्यात् सूक्ष्म बादर भेदतः । . त्रैधस्यैवं सागरस्याप्येवं या द्विभेदता ॥७॥
पल्योपम के तीन भेद होते हैं - १- उद्धार पल्योपम, २- अद्धापल्योपम और ३- क्षेत्र पल्योपम। इन प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं - सूक्ष्म और बादर । इसी तरह ही सागरोपम के भी तीन भेद होते हैं और इन तीन के भी इसी तरह दो-दो भेद होते हैं । (६६-७०)
उत्सेधांगुल सिद्धैक योजन प्रमितोऽवट । . उण्डत्वायाम विष्कभैरेष पल्य इति स्मृतः ॥७१॥ परिधिस्तस्य वृत्तस्य योजनत्रितयं भवेत् । . एकस्य योजनस्योनषष्ट भागेन संयुतम् ॥७२॥ स पूर्य उत्तर कुरुनृणां शिरसि मुण्डिते । दिनैरेकादि सप्तान्तैरूढ केशाग्र राशिभिः ॥७३॥
उत्सेधांगुल के माप से मापते जो योजन होता है उस योजन के अनुसार गहराई, चौड़ाई और लम्बाई वाला कुआं हो वह, 'पल्य' कहलाता है। उस कुएं की परिधि अर्थात् घेराव ३ योजन लगभग हो, उस कुएं में उत्तर कुरु क्षेत्र के युगलियों के मस्तक के एक दिन से आरम्भी सात दिन तक के बढ़े हुए बाल किनारे तक दबा दबाकर भर देना चाहिए। (७१ से ७३)॥
यह अभिप्राय क्षेत्र समास वृहद् वृत्ति' और 'जम्बूद्वीप पन्नति' में कहा है।