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अनुक्रम द्वारा स्थापन करना। फिर यथा स्थानक अंकों का जोड़ लगाना चाहिए । (५२ से ५४) अंक स्थानानि चैवम्
एक दश शत सहस्रायुत लक्ष प्रभुत कोटयः क्रमतः। अर्बुदमब्जं सर्वं निखर्व महापद्म शङ्कवस्तस्मात् ॥५५॥ जलधिश्चान्त्यं मध्यं परामिति दश गुणोत्तरं संज्ञाः ।।इति॥
अंक का स्थान इस तरह से है- एक, दस, सौ, हजार, दस हजार, लाख, दस लाख, करोड़, दस करोड़, अब्ज, दस अब्ज, खर्व, दस खर्व, निखर्व; देस निखर्व, महापद्म, दस महापद्म, शंकु, दस शंकु, जलधि, दस जलधि । इसी तरह अन्त्य, मध्य और परार्ध्य यह सर्व संख्या उत्तरोत्तर दस गुना समझनी चाहिए । (५५) अत्रोदाहरणम्
पञ्चत्र्येकमितो राशिर्दिवाकर गुणीकृतः। स्यादिशा षोडशशती क्रमोऽङ्कानां च वामतः ॥५६॥
गुणाकार का एक दृष्टान्त देते हैं - मानो कि १३५ को १२ से गुणा करना है तो ऊपर कहे अनुसार गुणा अंक रखने से जोड़ करते कुल १६२० आता है । (५६) अथ प्रसंगादुपयोगित्वाच्च भागहार विधिरुच्यतेः ।
यद्गुणो भाजकः शुद्धयेदन्त्यादेर्भाज्य राशितः । तत्फलं भागहारे स्यात् भागाप्राप्तौ चखं फलम् ॥५७॥ अग्रे यथाप्यते भागः पूर्वमंकं तथा भजेत्। षभिर्भागे यथा षष्टेः प्राप्यन्ते केवलं दश ॥१८॥
गुणाकार की विधि कही है तब प्रसंगोपात भागाकार की विधि भी उपयोगी होने से कहते हैं - अन्त्यादिक भाज्य- भाजक राशि से जितने गुणों का भाजक होता है उतना भागाकार- उतने अंक से भाग दिया जाता हो तो"फल" होता है, जब भाग न चले तब 'फल' में शून्य रखना जैसे-जैसे आगे भाग चलता हो वैसे-वैसे पूर्व के अंक का भाग देते जाना। उदाहरण तौर पर ६० को ६ का भाग देने पर फल में १० आता है। (५७-५८) अथ प्रकृतम्
पादः स्यादंगुलैः षभिर्वितस्तिः पादयोद्धयम् । वितस्तिद्वितयं हस्तौ द्वौ हस्तौ कुक्षिरुच्यते ॥५६॥