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साथे कर्म पण रहेलु छे अने कर्मना योगेज प्रा बधी विचित्रता छे, एम निश्वय थाय छे . __जो कर्म एकलु मानिये तो शो दोष ? जो कर्म एकलु मानिये नो जीव बिना कर्म ग्रहण करनार कोण ? वली जीव मात्र मां ज्ञानादि गुणोनो सद्भाव देखाय छे तो जीव बिना ज्ञानादि गुणोनो स्वामी कोण ? माटे जीव पण मानवो जोइये. एटले जीव पण अनादि नो, कर्म पण अनादि नो अने जीवनने कर्म नो संयोग पण अनादि नो छे. एवो जैन शासन नो सिद्धान्त छे ते सत्य छ .
जीव अरुपी अने कर्म रूपी ए बन्ने जाति अलग होवा छतां बन्ने नो योग केम थाय ? .
प्रत्युत्तर मां जणववानु के सोनु अने पाषाण, अरणी अने अग्नि ए अलग जाति छे छतां जेम बन्ने नो योग थयेलो छ तेम जीव अने कर्म ए वन्ने नी अलग जाति होवा छतां बन्ने नो योग थई शके छे. सोनु तेजवान छे, पाषाण निस्तेज छे' सोनु भारे छे. पाषाण हलको छे. सोनु द्रुत छे, पाषाणबद्ध छे, अने सोनु स्निग्ध अनेपाषाण रूक्ष छे छतां बन्ने नो योग थाय छे . जीव अने कर्म भिन्न जाति वाला होवा छतां बन्ने नो योग थई शके छे ... .