Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रतासूत्र छाया-ये केऽपि लोके तु अक्रियात्मानोऽन्येन पृष्ठाः धुतमादिशन्ति ।
आरम्भसक्ता गृद्धाश्च लोके, धर्म न जानन्ति विमोक्षहेतुम् ॥१६॥ अन्वयार्थ:-(लोगंमि) अस्मिन् लोके-संसारे (जे केइ अकिरियआया) ये अंक्रियात्मानः-क्रियारहित आत्मा येषां मते ते तथा (अन्नेन पुठा धुयमादिसति) अन्येन आत्मनोऽक्रियत्वे बन्धमोक्षौ न स्याताम् इत्यभिप्रायवता पृष्टा सन्तः धुत म क्षमादिशन्ति मोक्ष प्रतिपादयन्ति, ते सांख्याः (आरंभसत्ता) आरम्भसक्ताः 'जे के लोगमि' इत्यादि।
शब्दाथ--'लोगमि-लोके' इस लोक में 'जे केइ अकिरियायाये केपि अक्रियात्मानः' जो लोग आत्मा को क्रियारहित मानते हैं वे लोग 'अन्नेन पुट्ठा धुयमादिसंति-अन्येन पृष्टाः धुतं आदिशन्ति' दूसरे के पूछने पर मोक्षका प्रतिपादन करते हैं ऐसे वे सांख्यमतवाले 'आरं. भसत्ता-आरंभसक्ताः' आरम्भ में आसक्तिवाले और 'लोए गढियालोके गृद्धाः' विषय भोगों में मूच्छित-आसक्तिवाले होते हैं वे 'विमो. क्खहे-विमोक्षहेतुम्' मोक्ष के कारणरूप 'धम्म-धर्म' श्रुतचरित्ररूप धर्म को 'ण जाणंति-न जानन्ति' नहीं जानते हैं ॥१६॥ ___ अन्धयार्थ--इस संसार में जो कोई आत्मा को निष्क्रिय स्वीकार करते हैं और दूसरे के प्रश्न करने पर मोक्ष का प्रतिपादन करते हैं,
जे केइ लोगमि' त्यादि
शहा--लोग मि-लोके' मा ali 'जे केइ अकिरियआया-ये केपि अक्रियास्मान.' २ मे मात्भार या २8त भान छ, सवा 'अन्नेय पुट्टा धुयमादिस ति'-अन्येन पृष्ठाः धुनम् आदिशन्ति' भान पूछाथी भाक्षनु प्रतिपादन ४२ छ. सेवा ते सायमतामिया 'आरंभसत्ता-आरंभसताः' भार सभा भासहित 4 मने 'लोए गढिया-लोके गृद्धाः' विषयोगी भूछित अर्थात् भासहितवाजा खाय छे. तेथे। 'विमोक्खहेउ -विमेक्षिहेतुम्' में क्षना ॥२५. ३५ 'धम्म-धर्म' श्रुतयात्रि३५ यमाने 'ण जाणंति-न जानन्ति' यता नथी.॥१६॥
અન્વયાર્થ—આ સંસારમાં જે કઈ આત્માને નિષ્ક્રિયપણાથી સ્વીકારે છે, અને બીજા કેઈ પૂછે ત્યારે મોક્ષનું પ્રતિપાદન કરે છે. તેવા સામ્ય