Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. अ. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम्
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अन्वयार्थ : - (जे) ये - केचित् ( रक्खसा ) राक्षसाः - राक्षसात्मनो व्यन्तराः ( जमलोइया) यमलौकिकाः - अम्वादयः परमाधार्मिकाः (वा) वा अथवा (जे) येकेचन (सुरा) सुराः - देवाः सौधर्मादिवैमानिकदेवाः उपलक्षाणाद असुरा वाअसुरकुमारादि भवनवासिनः (य) च- चशब्दाद् ज्योतिष्कदेवाश्च (गंधव्त्रा गन्धर्वाः
है 'वा - वा' अथवा 'जे - ये' जो कोई 'सुरा-सुराः ' सौधर्मादि वैमानिक देव उपलक्षणसे असुरकुमारादि भवनपति 'य-च' और 'गंधण्यागंधर्वाः' गंधर्व तथा 'काया - कायाः पृथिवीकायादि छ जीवनीकाय 'य-च' और 'आगासगामी - आकाशगामिनः पक्षीगण अथवा जिनको आकाश गमन की लब्धी प्राप्त हुई है ऐसे विद्याचारण जङ्घाचारण आदि तथा 'जे-ये' जो कोई 'पुढो सिया - पृथ्याश्रिताः' पृथ्वी के आश्र यसे रहनेवाले पृथिव्यादि एकेन्द्रियादि पंचेद्रिय तक के सभी प्राणी है वे सब अपने आप किये कर्म से 'पुणो पुणो- पुनः पुनः' बार बार 'विप्परि यासं - विपर्यासम्' घटीयन्त्र के जैसे परिभ्रमण को 'उवेंति - उपयन्ति' प्राप्त होते हैं अर्थात् संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं ||१३||
अन्वयार्थ - जो राक्षस अर्थात् एक प्रकार के व्यन्तर हैं, जो अम्ब आदि परमाधार्मिक है, या जो सौधर्म देवलोक आदि में रहने वाले वैमानिक देव हैं, उपलक्षण से असुरकुमार आदि भवनवासी हैं, 'च'
छे 'वावा' अथवा 'जे-ये' ? 'सुरा - सुराः ' सौधर्भादि वैभानि देव उपलक्षथी असुरष्टुभाराहि लवनपति 'य-च' ने 'गंधव्वा-गंधर्वाः' ग ंधर्व' तथा ‘काया–कायाः'पृथ्वी अयाहि छ प्रभारना भवनीये। 'य-च' भने 'आगावगामी-आकाशगामिन' पक्षि समूह अथवा भेगाने आशमां भवानी सम्धी પ્રાપ્ત થઈ છે એવા વિદ્યાચારણુ જ ઘાચારણુ વિગેરે તથા ને-ચે” જે કાઈ 'पुढोसिया - पृथिव्याश्रिताः' पृथ्वीना आश्रयथी रहेवावाजा पृथिव्याहि मेमेन्द्रियथी પચેન્દ્રિય સુધીના બધા પ્રાણિયો છે, તેએ બધા પોતે પોતાની મેળેજ કરેલા थी 'पुणो पुणो- पुन पुन.' वारंवार विप्परियास - विपर्यासम् ' रेटडेनी भाइ परिभ्रभथुने 'वेति - उपयन्ति' प्राप्त थाय छे, अर्थात् संसा રમાં પરિભ્રમણ કરતા રહે છે એટલે કે સ'સારમાં જ ભટકચા કરે છે, ૫૧૩ા અન્વયા — જો કાઈ રાક્ષસ અર્થાત્ એક પ્રકારના ન્યતર જે અમ્બ વિગેરે પરમાધાર્મિક છે, અથવા જે સૌધ આદિ દેવલેાકમાં રહે. વાવાળા વૈમાનિક દેવ છે, ઉપલક્ષણથી અસુરકુમાર વિગેરે ભવનવાસી છે, ર' શબ્દથી જ્યાતિષ્ક છે, તથા ગધવ અને વિદ્યાધર છે, તથા છ જીવનિ