Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीय स्वरूपनिरूपणम्
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क्षेत्रादिभावरूपेण द्रव्यपर्यायरूपेण च जानाति न किमपि तस्यापरिज्ञातं भव atra भाव: । अत्र 'तायी' इत्यनेन सामान्यस्य 'मनुते' इत्यनेन विशेषस्य परिशतृत्वेन सः सर्वज्ञः सर्वदर्शीति प्रदर्शितम् । 'न कारणाभावात् कार्य समुत्पयते' इति न्यायात् 'दर्शनावरणान्तकः' इत्यनेन घातिकर्मचतुष्टयस्य क्षपकत्वं प्रदर्शितम् घातिकर्मचतुष्टयक्षये सत्येव केवलज्ञान केवलदर्शनोत्पत्तिसंभवादिति ॥ १ ॥ मूलम् - अंतए वितिगिंच्छाप, से जाणइ अणेलिंसं । अलिसस्स अवखाया णं से होई तेहि तहिं ॥ २ ॥
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छाया - अन्तको विचिकित्सायाः स जानात्यनीदृशम् । अनीशस्याख्याता न स भवति तत्र तत्र ॥ २॥
अतीन कालिक, वर्त्तमानकालिक और अव्यिकालिक इस प्रकार तीनों कालों के जीव अजीव आदि समस्त पदार्थों को जानता है।
'तय' धातु जानने के अर्थ में है। यहां 'तायी' इस पद से सामान्य धर्मों का जानना प्रकट किया गया है, और 'मन्नह' इस पद से विशेष धर्मों का जानना सूचित किया है । अतः वह सर्वज्ञ सर्वदर्शी होता है, यह प्रदर्शित किया गया है ।
कारण के अभाव में कार्य की उत्पत्ति नहीं होती इस न्याय से ' दर्शनावरणान्तक' इस पद से चारों चातिक कर्मो का क्षय करने वाला अर्थ लिया गया है, क्यों कि चारों घातिया कर्मों का क्षय होने ही केवलज्ञान और केवलदर्शन की उत्पत्ति होना संभव है ॥ १ ॥ અને ભવિષ્ય કાળ સધી આરીતે ત્રણે કાળના જીવ, અજીવ, વિગેરે સઘળા પદાર્થાને જાણે છે
'तय' धातु भगुवाना अर्थमा छे. मडियां 'तायी' भा પદથી अघणा धर्मेने लघुनारा मे अर्थ प्रगट श्वामां आवे छे. मने मन्नइ ? આ પત્રથી વિશેષ ધર્માંના જાણુનારા એમ સૂચિત થાય છે તેથી તે सर्वज्ञ, सर्वहशी हाय छे. भ मताववामां आवे छे.
अरगुना भलाषमां अयंनी उत्पत्ति थती नथ, या न्यायथी 'दर्शनावरणान्तक' मा पह थी थारे घातिया भेना क्षय उरवावाजा मे प्रभा ના અથ સ્વીકારવામાં આવેલ છે. કેમકે ચારે ઘાતિયા કર્મોના ક્ષય થાય ત્યારે જ કેવળજ્ઞાન અને કેવળદર્શનની ઉત્પત્તિ થવા સભવ છે. ૧