Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 551
________________ समयार्थबोधिनी टोकाप्र श्रु अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् तु (आघाय) आरत-कथनमस्ति यत यदुः वान्तरण तु दूरेऽस्ताम् किन्तु मनुष्यमन्तरेग (अयं) अयम् अग्रे निर्दिश्यमानः (समुस्सप) समुच्छ्रपः जिनधर्मश्रवणादिरूपः समुन्नयोऽपि (दुल्लहे) दुर्लभः किं पुनर्मोक्षगमनमिति ॥१७॥ टीका--'एगेर्सि' एकेपां-केपाश्चित् वादिनाम् 'आहिय' आरूपात-कथन यत् देवा एव उत्तरोत्तरस्थान प्राप्नुवन्तः सर्वदुः बानामतं कुर्वन्ती तन्न, तत्र धर्माराधनासं मवात् किन्तु मनुष्या एव (दुवावाणं) दुःखानाम् (अंत) अन्तं नार्श 'करंति' कुर्वन्ति तत्रा धर्माराधनसामग्रीमद् भावात् । अत्र पिये 'एगेसिं पुण' एकेषां केपाश्चिद् गणधरादीनां तु 'भाघाय'-आख्यातं कथनं भवति यत् सर्वदुःखानामन्तकरणं दृरेऽपास्ताम् किन्तु मनुष्यमन्तरेण प्रथमम् 'अयं' अयम्-अग्रे निर्दिश्यमानः 'समुस्सए' समुन्या मनुष्यभवार्यक्षेत्रजिनधर्मश्रवणादिरूपोऽभ्युदयोऽपि युगसंमिलिकान्यायेन 'दुल्लहे' दुर्लभोवर्तते । उक्तञ्च-- करना तो दूर रहा, मनुष्य के विना आगे कहा जाने वाला जिनधर्म श्रवण आदि रूप संयोग भी दुर्लभ है । मोक्ष को प्राप्त करने की तो घात ही क्या है ॥१७॥ टीकार्थ-कोई कोई कहते हैं कि देव ही उच्च से उच्चतर स्थान प्राप्त करते हुए समन्त दुःखों का अन्त करते हैं। यह कथन समीचीन नहीं हैं, क्योंकि देव वैसी धर्माराधना नहीं कर सकते। दावों का अन्त तो मनुष्य ही कर सकते है। मनुष्यभव में ही धर्माराधना की परिपूर्ण सामग्री का सद्भाव होता है। इस विषय में गणधर आदि का कथन है कि मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र, जिनधर्म श्रवण आदि अभ्युदय प्राप्त होना हुर्लभ है। कहा भी है-'ननु पुनरिमति दुर्लभम्' इत्यादि છે કે-સઘળા દુઃખેને નાશ કરે તે દૂર રહ્યો, મનુષ્યની વિના આગળ કહેવામાં આવનાર જીન ધર્મ શ્રવણ વિગેરે રૂપ સ ગ પણ દુર્લભ છે. તે પછી મે ક્ષ પ્રાપ્ત કરવાની તે વાત જ કેમ કહી શકાય ? ૧૭ ટીકાઈ–કઈ કઈ કહે છે કે–દેવ જ ઉંચામાં ઉંચું સ્થાન પ્રાપ્ત કરીને સઘળા દુઃખને અંત કરે છે. આ કથન એગ્ય નથી. કેમકે દેવ એ પ્રમાણેની ધર્મારાધના કરી શકતા નથી. એને અંત તે મનુષ્ય જ કરી શકે છે. મનુષ્ય ભાવમાં જ ધર્મારાધનની પૂર્ણ સામગ્રી રહેલી છે. આ વિષ. યમાં ગણધર વિગેરેનું કહેવું છે કે-મનુષ્યભવ, આર્યક્ષેત્ર, જીન ધર્મ શ્રવણ, विगैरे सयुय माग्योदय प्राप्त 24 Taa छे यु ५६ छ-'ननु पुनरिदमतिदुर्लभम्' याति

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