Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५४१ ___ अन्वयार्थ:--(इओ) इतः-मनुष्यभवतः (विद्धंममाणस्स) विध्वंसमानस्य परि-, भ्रश्यता पाणिनः (पुगो) पुनः कन्मान्तरे (संबोहि) संबोधिः जिनधर्ममाप्तिरूप: (दुलहा) दुलेमाः दुष्माप्यो भवति । कथमित्य ह-याः मनुष्यभवभ्रस्य जन्मजन्मानारेऽपि (तहच्चाओ) तथार्चा:-तथाविधदेहाः बोधिप्राप्तियोग्य शरीराणि, अथवा तथार्चा इति बोधिग्रहणयोग्या आत्मपरिणतिरूपाः शुभलेश्याः (दुल्लहाओ) - 'ओ शिद्ध समाजस्म' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'हओ-इत:' जो इस मनुष्य भवले 'विद्धसमाणस्सविध्वंलमानस्य' भृष्ट होते हुवे प्राणी को 'पुणो पुनः' जन्मान्तरमें 'संयोहि-संधि।' जिन धर्म प्राप्ति रूप योची 'दुल्लाहा-दुर्लभाः' दुर्लभ होता है कारण की मनुष्य भवमे भ्रष्ट होने बालो को जन्मजन्मान्तरमें भी 'तहच्चाओ-तथा! ' योधिप्राप्ति योग्य शरीर अथवा बोधिग्रहण योग्य आत्मपरिणति रूप शुभ लेश्या 'दुल्ललाओ-दुल ना दुर्लभ होता है 'जे-य:' जो अचर्चा जो देह को 'धम्मठे-धर्मार्थे' जिनोक्त धर्म के अनुष्ठान को 'विघागरे-धागृगीयात्' व्याख्यान द्वारा कहते हैं ऐसा देह दुर्लभ होता है ॥१८॥
अन्धयार्थ--मनुष्य भच से भ्रष्ट हुए प्राणी को पुन: जन्मान्तर में पोधि जिनधर्म की प्राप्ति होना कठिन है। क्योंकि मनुष्य भव से चूके प्राणी को जन्म जन्मान्तर में भी बोधि प्राप्त होने योग्य शरीर अथवा बोधी ग्रहण के योग्य शुभ लेश्या का प्राप्त होना कठिन है। जिस प्रकार
'इओ विद्धसमाणस्स' त्याह
शा---'इओ-इतर म भनुष्य था "विद्धंसमाणस्य-विध्वंस* मानस्य' भ्रष्ट था। प्राशीने 'पुणो-पुन' भान्तरमा 'संबोहि-संबोधिः'
ON प्राप्ति३५ योधि 'दुल्लहा-दुल भा.' हुन ।य छे. ४.२९ , मनु ध्यमथी भ्रष्ट वाणा भन्मान्तरमा ५ तहत्त्चाओं-तथा.' બેબીની પ્રાપ્તી ચોગ્ય શરીર અથવા બોધિ ગ્રહણ ચગ્ય આત્મપરિણતિ ३५ शुल वेश्या 'दुल्लाहाओ-दुर्लभा" gee डाय छे 'जे-यः' २ मया हेडन 'धम्मद्रे-धर्मार्थे, 'न यमना गनुानने 'वियागरे-व्यागृणीयात्' વ્યાખ્યાન દ્વારા કહે એવું શરીર દુર્લભ હોય છે ૧૮
અન્વયાર્થ–મનુષ્ય ભવથી ભ્રષ્ટ થયેલ પ્રાણીને જન્માક્તરમાં ફરીથી બેધિ–જીન ધર્મની પ્રાપ્તિ થવી મુશ્કેલ છે. કેમકે મનુષ્ય ભવથી ચૂકેલા * પ્રાણીને જન્મ જન્માંતરમાં પણ બે ધિ પ્રાપ્ત થવા એગ્ય શરીર અથવા બધિગ્રહણ 5 શુભ લેસ્થાન પ્રાપ્ત થવુ કઠણ છે. જે રીતે શરીરને