Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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________________ - - 184 सूत्रताको राहित्येन सर्वेषां प्राणिनां संसारसमुद्राद् रक्षणकर्त्तारो भवन्तीत्यतो नान्यथा वदन्तीति भावः / 'त्ति' इति पूर्वोक्तपकारेण 'वेमि' ब्रवीमि कथयामि / इति सुधर्मस्वामि कथनम् // 6 // / // इति श्री विश्वविख्यात-जगबल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशभाषा कलितललितकलापालापकाविशुद्धगद्यपद्यनैकग्रन्थनिर्मापक, वादिमानमर्दक-श्रीशाहच्छत्रपति कोल्हापुरराजमदत्त'जैनाचार्य' पदभूपित - कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य - जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालचतिविरचितायां श्री "सूत्रकृताङ्गमूत्रस्य" समयार्थबोधिन्याख्यायां व्याख्यायां याथातथ्यनामकम् पोडशं गाथाऽध्ययनं समाप्तम् // 16 // // समाप्तः प्रथमश्रुतस्कन्धः॥ संसार समुद्र से रक्षा करने वाले होते हैं। अतः वे अन्यथावादी नहीं हो सकते / ऐसा मैं कहता हूं। यह सुधर्मा स्वामी का वचन है // 6 // जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजीमहाराजकृत __ "सूत्रकृतागसूत्र" की समयार्थबोधिनी व्याख्या का विधिनिषेध नामक सोलहवां अध्ययन समाप्त // 16 // ॥प्रथम श्रुतस्कंध समाप्त / / સમુદ્રથી રક્ષા કરવાવાળા હોય છે. તેથી તેઓ અન્યથા કહેવાવાળા હતા नथी. से प्रभाएं हुईछु मा सुधास्वामीनु क्यन छे. // 1 // જૈનાચાર્ય જેનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલજી મહારાજકુત સૂત્રકૃતાંગસૂત્રની સમયાર્થબંધિની વ્યાખ્યાનું વિધિનિષેધનાનનું સોળમું અધ્યયન સમાસ 13. પહેલુ કૃતસકંધ સમાપ્ત છે 1-16 છે