Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थयोधिनी टीका प्र. शु. अ. १४ नन्थस्वरूपनिरूपणम् मूलम्-णेया जहा अंधकारंसि राओ,
माग ण जाणइ अपस्लमाण।। से सूरियल अभुग्गलेणं,
अगं वियाणाइ गालियंसि ॥१२॥ छाया-नेता यथाऽन्धकारायां रात्रौ मागं न जानात्यपश्यन् ।
स सूर्यस्याऽभ्युद्गमेन मार्ग विजानाति प्रकाशिते ॥१२॥. अथवा जैले विषमिश्रित आहार करते हुए पुरुष को यदि कोई रोक देता है तो वह उस्को परम हितैपी है। इसी प्रकार प्रसाद वश असदाचरण ई प्रवृत्त पुरुष को जो रोकता है, यह भी उला परम हितैषी है ॥११॥
'णेथा जहा अंधकारं' इत्यादि।
शब्दार्थ-'जहा-यथा' जैसे 'णेया-नेता' नायक अर्थात् मार्गदशंक-उपदेशक 'अधकारंसि-अन्धकारायाम्' अंधकार वाली 'राओरात्रौ' रानी 'अपस्तमाणे-अपश्यन्' अपना अंग भी न देखता हुआ 'मर्ग-मार्गम्' अपना परिचित मार्गभी ‘ण जाणह-म जानाति' नहीं जानता है 'ले-सः' ऐसा वह नायक 'सूरियस्त-सूर्यस्य' सूर्यका 'अब्भुग्गभेणं-अभ्युद्धसेन' उदय से 'पगासियंसि-प्रकाशिते' चारों ओर प्रकाश होजाने पर 'मग्ग-मार्गम्' मार्गको 'विधाणाह-विजानाति'जान लेता है ॥१२॥
અથવા જેમ ઝેર ભેળવેલે આહાર કરતા પુરૂષને જે કંઈ રેકી દે, તો તે તેને પરમ હિતિષી કહેવાય છે. એ જ પ્રમાણે પ્રમાદને વશ થયેલા તથા અસદુ આચરણમાં પ્રવૃત્ત થયેલા પુરૂષને જે રેકી દે છે, તે પણ તેને પરમ હિતૈષી કહેવાય છે. ૧૧
'णेया जहा अधकार' त्यादि
शvatथ --'जहा-यथा' म 'णेया-नेता' नाय3 मात भाग ४-५हेश 'मधकारंसि-गन्धकारायाम्' म ३.२युत 'राओ-रात्रौ' रात्रे 'अपस्समाणे अपश्यन्' पाताना शरीरने ५g as शय तवा 'मग-मार्गम्' भागने । 'न जाणइ-न जानाति' तो नथी 'से-स.' मेवे ते नाय 'सूरियस्ससूर्यस्य' सूर्यना 'अब्भुगमेणं-अभ्युद्गमेन' ६५ वाथी 'पगासियसि-प्रकाशिते' यारे त२५ ॥ वाथी 'मग-मागम्' भागने 'वियाणाइ-विजानाति' જાણું લે છે. ૧૨ા
खू० ५४