Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतो
दृशभाषकस्तु अतीतवर्त्तमानानागतकालज्ञानवानेव भवति, स एव चाखिलवन्धनानां परिज्ञाता त्रोटयता च भवतीत्यत्र प्रतिपाद्यते अनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य पञ्चदशाध्ययनस्येदमादिसूत्रम् - 'जमतीयं' इत्यादि ।
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मूलम् - जमतीयं पंडुप्पन्नं, आगमिस्सं च णायओ । संव्वं सेन्नई तं ताई, दंसणावरर्णतए ॥१॥
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छाया - यदतीतं प्रत्युत्पन्नम् आगमिष्यच्च नायकः । सर्वं मन्यते तत् त्रायी दर्शनावरणान्तकः ||१||
प्ररूपणा तो वही कर सकता है, जिसे भूत, वर्तमान और भविष्यत् काल का ज्ञान हो, वही समस्त बन्धनों को जानने वाला और तोड़नें वाला होता है । यह तथ्य यहां प्रकट किया जाता है । इस सम्बन्ध से प्राप्त पन्द्रहवें अध्ययन का यह प्रथम सूत्र है- 'जमनीयं' इत्यादि ।
शब्दार्थ - जो महापुरुष 'दंसणावरणतए - दर्शनावरणान्तकः' दर्शनावरणीय कर्मका अतकरनेवाला अर्थात् चारों प्रकारके घातिया. कर्म को खपानेवाला अतएव 'ताई - त्रायी' प्राणियों की रक्षाकरनेवाला तथा 'णायओ - ज्ञायक : ' उत्पादादिधर्म पदार्थ को जाननेवाला अथवा 'णायओ - नायकः' यथावस्थित वस्तु का प्रतिपादन करनेवाले होने से नायक - नेता ऐसा वह 'जमतीयं यदतीतम्' जो पदार्थ भूतकाल में हो चुके हैं तथा जो 'पप्पनं प्रत्युत्पन्नम् वर्तमान काल में हो रहा है और
એજ કરી શકે છે કે-જેને ભૂત, વર્તમાન અને ભવિષ્ય કાળનું જ્ઞાન હોય, એજ સઘળા મન્યુને ને જાણવાવાળા અને તેાડવાવાળા હોય છે. આ તથ્ય અહિયાં પ્રગટ કરવામાં આવે છે. આ સંબધથી પ્રાપ્ત થયેલ ૫ દરમા અધ્યયન पहेलु सूत्र छे - 'जमतीयं'' त्यिाहि.
शब्दार्थ—ने महायु३ष 'दसणावरणंतर - दर्शनावरणान्तक' दर्शनावरणीय કમના અંત કરવાવાળા અર્થાત્ ચારે પ્રકારના ઘાતિયાકર્મને ખપાવવાવાળા भेटला भाटे ४ 'ताई - त्रायी' प्राथियोनी रक्षा ठेवावाजा तथा 'णायओ-शायकः' उत्पाद धर्म पहार्थने लघुवावाजा अथवा 'णायओ नायकः' यथावस्थित वस्तुनुं प्रतिपादन ४२वावाजा होवाथी नायम्- नेता थेवे। ते 'जमतीययदतीतम्' ? यहार्थ भूतअणसां था। यूहेस हे तथा ने पहार्थ 'पहुप्पन्नंप्रत्युत्पन्नम्' वर्तभानाणभां विद्यमान छे भने ले पार्थ' 'आगमित्सं - आग