Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सूत्रकृतात्रे - अन्वयार्थ :-- (अस्सि) अस्मिन् गुरुकुले निवसन् शिष्यः (मुठिच्चा) मुस्थायः ।। - समाधिरूपे मुक्तिमार्गे सम्यक् स्थित्वा (तिविहेण) त्रिविधेन-त्रिकरणत्रियोगेन (तायी) त्रायी-सकलजीवत्राणकारको भवति (एपसु या) एतेषु च-समितिगुप्त्यादिषु विचरतः-संयतस्य (संति) शान्तिम्-समस्तक्लेशक्षयरूपाम् (निरोह) सुस्थाय' समाधि रूप मुक्ति मार्गमें सुचारु रूपसे निवास करनेवाला साधु 'तिविहेण-त्रिविधेन' त्रिकरण तीन योगसे 'तायी-त्रायी' समस्त जीवों का रक्षण करने वाला होता है 'एएस्तु-एतेषु' ये समिति और गुप्तिके पालन करनेवाले संयतको 'या संनि-घा शान्तिः सकल क्लेश क्षयरूप जो शान्ति है तथा 'निरोह-निरोधम्' अशेष कर्मक्षय रूप निरोध-कर्मका क्षय होना 'आहु-आहुः सर्वज्ञों ने कहा है वे कौन थे? ऐसी जिज्ञासा में कहते हैं-'तिलोगदंसी-त्रिलोकदर्शिनः' तिनों लोकके ज्ञाता 'ते-ते' वे तीर्थंकरादि 'एवमक्खंति-एबमाचक्षते' इस प्रकारसे कहते हैं की भुज्ज ध-भूपश्च' फिरसे 'पमायसंगं-प्रमादसङ्गम्' मदक पायादि संसर्ग को 'ण एयंतु-न यन्तु' प्राप्त न होवे ॥१६॥
अन्वधार्थ-गुरुकुल में निवास करनेवाला शिष्य समाधि रूप सम्यग् ज्ञान चारित्रात्मक मुक्तिमार्ग में सम्यक स्थित होकर त्रिकरण त्रियोग से सकल जीवों का त्राण कारक (रक्षक) होता है। मोक्षतत्व को जानने वाले विद्वान् सर्वज्ञ भगवान् तीर्थकर समिति गुप्ति आदि में समाधि ३५नुभुतिमामा सुया३ ५२थी निवास ४२वावा। साधु 'तिवि हेण-त्रिविधेन' ४ि२९५ त्रियाया 'तायी-नायी' सघा वानु २क्षय ४२१। वाणे डाय छे. 'एएसु-एतेषु' या समिति ने शुक्तिनु पालन ४२१।१।। सयतन 'या संवि-या शान्तिः स बेश क्षय ३५२ शान्ति छ तथा 'निरोह निराधम्' मशेष ४ क्षय ३५ निराध अर्थात् भनो क्षय थवानु 'आहुआहुः' सज्ञाय युं छे. ते सपश और ता ? मे ज्ञासा भाटे ४ छ है-'तिलोगदसी-त्रिलोकदर्शिनः नये सहने पापा 'ते-' स तिथ.
हि एवमक्खं त-एवमाचक्षते' ये रीते ४९ छ -'भूज य-भूयश्च' शथी 'पमायसगं-प्रमादसङ्गम्' भाषाय विगेरे ससगान 'ण एयंतु -न यन्तु' प्रान्त ન થાય ૧૬
અન્વયાર્થ–ગુરૂકુળમાં નિવાસ કરવાવાળા શિષ્ય સમાધિ રૂપ સમ્ય જ્ઞાન ચારિત્રાત્મક મુક્તિમાર્ગમાં સુસ્થિત થઈને ત્રણ કરણ અને ત્રણ ચોગથી લકલ જીવોના ત્રાણ કારક (રક્ષક) થાય છે મોક્ષ તત્વને જાણવાવાળા વિદ્વાન સર્વજ્ઞ ભગવાન્ તીર્થંકર સમિતિ ગુપ્તિ વિગેરેમાં વિચરવાવાળ' સંયમી સાધુને