Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १३ याथानथ्यस्वरूपनिरूपणम् ३४९ मूलम्-ण तस्स जाई व कुलं व ताणं,
जपणथ विजाचरणं सुचिणं। णिक्खम्ने 'से सेवेऽगारि कम्म,
ण से पारए हाई विसायणाएं॥११॥ छाया- न तस्य जातिश्च कुलं च त्राणं, नान्यत्र विद्याचरणं सुचीर्णम् ।
निष्क्रम्य स सेवतेऽगारिकर्म, न सपारगो भाति विमोचनाय ॥११॥ अभिमान न करे । जो ऐसा करता है वही सर्वज्ञ के मार्ग का अनुयायी है ॥१०॥ ___ मद मत्त पुरुष का कोई प्राण (रक्षण) नहीं कर सरता इस को दिखलाते हैं 'न तस्स' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'तस्ल-तस्य' मदोन्मत्त पुरुष का 'जाई वा-जातिवा' जातिमद अथवा 'कुलं वा-कुलं वा' अलमद 'न ताणं-न प्राणम्' संसारसे रक्षण करनेवाला नहीं होता है 'णण्णत्थ-मान्यत्र' सिवाय 'विज्जाचरण सुविणं-विद्याचरणं सुचीर्ण' सम्यक् प्रकार से सेवन किया हुआ ज्ञान और चारित्र अतिरिक्त के संसार से कोई रक्षण करने वाला नहीं होता 'से-स:' जातिकुलका अभिमान वाला साधु 'णिक्खम्म-निष्क्रम्प' प्रव्रज्या ग्रहण करके भी 'अगारिकम्म-अगारिकर्म सावध कर्मानुष्ठान-अर्थात् गृहस्थ के कर्म को 'सेवह-सवते' सेवन करता है 'से-स' वह विमोयणाए-विमोचनाय' अपने कर्म को नि:
જન્મ વંશનુ અભિમાન ન કરે. આવી રીતે જે અભિમાન કરતા નથી. એ જ , સર્વજ્ઞા માર્ગના અનુયાયી હોય છે. ૧૦ ,
મદમસ્ત પુરૂષનુ ત્રણ (રક્ષણ) કરી શકાતું નથી. તે બતાવવા सूत्रधार ४ छ-'न तस्स जाईव कुलं व ताण' इत्यादि
साथ--'तस्स-तस्य' भन्मत्त ५३पने। 'जाई वा-जाति ' तिम मथवा 'कुलं वा-फुलं वा' पुसमा 'न ताग-न त्राणम्' स सारथी २क्षा ४२वावा डाता नथी ‘णण्णत्य-नान्यत्र' सिवाय 'विज्जाचरणं सुचिण्ण-विद्याचरणं सुचीर्णम्' સભ્ય પ્રકારથી સેવન કરવામાં આવેલ જ્ઞાન અને ચારિત્ર વિના સંસારથી मे २क्ष ४२वापाणु डातु नयी 'से-स.' गति भने सुना भलिभानपाणी साधु 'णिसम्म-निष्क्रम्य' ५zarul 3 रीने ५ 'अगारिकम्मअगारि कम' साप मानुन २५थात् थाना मन 'सेवइ-सेवते' से