Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सूत्रकृतास्त्र मात्रप्रव्रज्यया अविरत्या च, तथा रागद्वेपाभ्यां वा लोकम् 'अणुसंबरांति' अनुसंचरन्ति-स्वकृत कर्मप्रेरिताः प्राणिनो भवाटवीं परिभ्रमन्तीति भावः ॥१४॥ मूलम्-न कम्मुणा कम्म खर्वेति वाला,
अकम्मुणा कम्म खति धीरां । मेधाविणो लोभमयावतीता,
संतोसिणो नो पैकरोति पाँवं ॥१५॥ छाया-न कर्मणा कर्म क्षपयन्ति वाला, अकर्मणा कर्म क्षपयन्ति धीराः ।
मेधाविनो लोभमयादतीताः, सन्तोपिणो नो प्रकुर्वन्ति पापम् ।१५। से और द्वेष का आशय यह है कि अपने अपने किये कर्मों से प्रेरित होकर प्राणी संसार रूपी अटवी में भ्रमण करते हैं ॥१४॥
'न कम्मुणा कम्मखति बाला' इत्यादि।
शब्दार्थ-'पाला-बालाः कर्मसे कर्मका नाश होता है ऐसा मानने वाले अज्ञानी 'कम्मुणा-कर्मणा' सावद्य का आरम्भ रूप आस्रव द्वारसे 'कम्म-कर्म' पापकर्म 'न खति-न क्षपयन्ति' नाश नहीं कर सकते हैं अर्थात् पापकर्म करनेके कारण अपने कर्मों का क्षपण नहीं कर सकते है परन्तु 'धीरा-धीराः' धीर पुरुष 'अकम्मुणा-अकर्मणा' आस्रवों को रोककर 'कम्म-कर्म' पापकर्म 'खति-क्षपयनित' क्षपण करते हैं अतः 'मेहाविणो-मेधाविलः' बुद्धिमान् पुरूष 'लोभमयावतीता-लोभ
કહેવાને આશય એ છે કે-પત પિતાના કરેલા કર્મોથી પ્રેરાઈને પ્રાણી સંસાર રૂપ અટવ-જંગલમાં ભટક્યા કરે છે. ૧૪
'कम्मुणा कम्म खति बाला' छत्यादि
शा---'वाला-वालाः' भयो । मन नाश थाय छ तम भान. पापा मशानीयो 'कम्मुणा-कर्मणा' साधना आरम ३५ मानव द्वारथी 'कम्म-कर्म' पा५४ 'न खवे ति-नक्षपयन्ति' नाश ४॥ शता नथी. अर्थात् ५।५ ४२वाने ४२ पोताना ना ना ४२री शता नथी. ५२'तु 'धीराधीरा' धीर ५३५ 'अकम्मुणा-अकर्मणा' मासवाने श्रीन 'कम्म-कर्म' ५५ ४ 'खवे ति-क्षपयन्ति' भा२ छे. तेथी 'मेहाविणो-मेधाविनः' भुद्धिमान् Y३५ 'लोभमयावतीता-लोभमयादतीताः' ५२५थी दू२ २से . तथा ४शन