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________________ १३४ सूत्रतासूत्र छाया-ये केऽपि लोके तु अक्रियात्मानोऽन्येन पृष्ठाः धुतमादिशन्ति । आरम्भसक्ता गृद्धाश्च लोके, धर्म न जानन्ति विमोक्षहेतुम् ॥१६॥ अन्वयार्थ:-(लोगंमि) अस्मिन् लोके-संसारे (जे केइ अकिरियआया) ये अंक्रियात्मानः-क्रियारहित आत्मा येषां मते ते तथा (अन्नेन पुठा धुयमादिसति) अन्येन आत्मनोऽक्रियत्वे बन्धमोक्षौ न स्याताम् इत्यभिप्रायवता पृष्टा सन्तः धुत म क्षमादिशन्ति मोक्ष प्रतिपादयन्ति, ते सांख्याः (आरंभसत्ता) आरम्भसक्ताः 'जे के लोगमि' इत्यादि। शब्दाथ--'लोगमि-लोके' इस लोक में 'जे केइ अकिरियायाये केपि अक्रियात्मानः' जो लोग आत्मा को क्रियारहित मानते हैं वे लोग 'अन्नेन पुट्ठा धुयमादिसंति-अन्येन पृष्टाः धुतं आदिशन्ति' दूसरे के पूछने पर मोक्षका प्रतिपादन करते हैं ऐसे वे सांख्यमतवाले 'आरं. भसत्ता-आरंभसक्ताः' आरम्भ में आसक्तिवाले और 'लोए गढियालोके गृद्धाः' विषय भोगों में मूच्छित-आसक्तिवाले होते हैं वे 'विमो. क्खहे-विमोक्षहेतुम्' मोक्ष के कारणरूप 'धम्म-धर्म' श्रुतचरित्ररूप धर्म को 'ण जाणंति-न जानन्ति' नहीं जानते हैं ॥१६॥ ___ अन्धयार्थ--इस संसार में जो कोई आत्मा को निष्क्रिय स्वीकार करते हैं और दूसरे के प्रश्न करने पर मोक्ष का प्रतिपादन करते हैं, जे केइ लोगमि' त्यादि शहा--लोग मि-लोके' मा ali 'जे केइ अकिरियआया-ये केपि अक्रियास्मान.' २ मे मात्भार या २8त भान छ, सवा 'अन्नेय पुट्टा धुयमादिस ति'-अन्येन पृष्ठाः धुनम् आदिशन्ति' भान पूछाथी भाक्षनु प्रतिपादन ४२ छ. सेवा ते सायमतामिया 'आरंभसत्ता-आरंभसताः' भार सभा भासहित 4 मने 'लोए गढिया-लोके गृद्धाः' विषयोगी भूछित अर्थात् भासहितवाजा खाय छे. तेथे। 'विमोक्खहेउ -विमेक्षिहेतुम्' में क्षना ॥२५. ३५ 'धम्म-धर्म' श्रुतयात्रि३५ यमाने 'ण जाणंति-न जानन्ति' यता नथी.॥१६॥ અન્વયાર્થ—આ સંસારમાં જે કઈ આત્માને નિષ્ક્રિયપણાથી સ્વીકારે છે, અને બીજા કેઈ પૂછે ત્યારે મોક્ષનું પ્રતિપાદન કરે છે. તેવા સામ્ય
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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