Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र.श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् माहुः कथयन्ति । यहा-'छलायतणं' छळायतनम्-छलानां-कपटानाम् आयतनं -स्थानं छलायतनम् एतादृशम् 'कम्म' कर्म कुर्वन्तीति ॥५॥ मूलम्-ते एवमक्खंति अबुज्झमाणा,
विरूवरूवाणि अकिरियवाई। जे मायइत्ता बहवे मंणूसा,
भवंति संसौरमणोवदग्गं ॥६॥ छाया-ते एवमाख्यान्त्यबुद्धयमाना, विरूपरूपाण्यक्रियावादिनः।
यान्यादाय बहवो मनुष्या, भ्रमन्ति संसारमनवदाम् ॥६॥ दत्त के पास नयाकम्पल हैं। किन्तु छलवादी इस अर्थ को छोड़कर 'नव' शब्द में संख्या का आरोप कर लेता है और कहता है-देवदत्त के पास नौ कंपल कहां हैं ? ये अक्रियावादी भी इसी प्रकार छल का प्रयोग करते हैं ॥५॥ 'ते एवमक्खंति' इत्यादि।
शब्दार्थ-'ते-ते' वे पूर्वोक्त 'अकिरियावाई-प्रक्रियावादिनः' वस्तु. स्वरूपको न समझने वाले चार्वाक यौद्ध आदि अक्रियावादी 'अज्ममाणा-अवुध्यमानाः' सदसद्बोध न जानते हुए 'एवं 'एवं-एवम्' इस प्रकार से विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' अनेक प्रकार के शास्त्रों का 'अक्खंति-आख्यान्ति' कथन करते हैं 'जे मायइसा-यमादाय जिन शास्त्रोंका आश्रयलेकर 'पहवे मणूसा-पहवो मनुष्या' बहुतसे अज्ञानी
हत्तनी पासे नवी vणे! छे. परतु wanही मामथन छोडी नक्ष શબ્દમાં સંખ્યાને આરેપ કરીલે છે, અને કહે છે કે-દેવદત્તની પાસે નવ કાંબળે કયાં છે? આ અક્રિયાવાદીયે પણ એજ પ્રમાણે છળનો પ્રયોગ કરે છે. પા
'वे एवमकखंति' त्यादि
Avan-a-' को 6५२ ४अपामा मावेत 'अकिरियावाई-अक्रियावो. વિર વહુના યથાર્થ પણાને ન સમજવા વાળા ચાર્વાક બૌદ્ધ વિગેરે અકિ. यापाहियो 'अबुझमाणा-अबुध्यमानाः' सहसमाधन न समin 'एवंएवम्' मा प्राथी "विरूवरूवाणि-विरूपरूपाणि' भने प्रा२मा शालीन 'अवंति-बाख्यान्ति' ४यन ४२ छे. 'जे मायइत्ता-यमादाय' २ शालीना भास ने 'बहवे मणूमा-बहवो मनुष्याः' घg! ! मसानी मनुष्या