Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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संत्रकता • सर्वशन्यतामतं निराकत शास्त्रकारः प्रक्रमते-'जहाहि अंधे' इत्यादि। मूलम्-जहाहि अंधे सह जोतिणा वि,
हवाइ णो पैस्सति हीणणेत्ते। 'संतंपि ते एव मैकिरियवाई,
किरियं ण पस्तंति निरुद्धपन्ना ॥८॥ छाया-यथा ह्याधः सह ज्योतिपापि, रूपाणि न पश्यति हीननेत्रः।
सतीमपि ते एवमक्रियावादिनः-क्रियां न पश्यन्ति निरूद्धपाः ।। शून्यतावादी के मन का निराकरण करने के लिए शास्त्रकार करते हैं-'जहा हि अंधे' इत्यादि।
शब्दार्थ-'जहाहि-यथा' जैसे 'अंधे-अन्ध:' जन्मान्ध अथवा • 'हीणनेते-हीननेत्र' जन्मके पश्चात् जिनके नेत्र का तेज नष्ट हुवा हो ऐसा कोई पुरुष 'जोणा वि सह-ज्योतिपापि सह' प्रदीप आदि के प्रकाश के साथ होने पर भी 'रूवाई-रूपाणि' वस्तु के स्वरूपको 'णो पस्सति-न पश्यति' देखता नहीं है 'एवं-एवम्' इसीप्रकार 'ते-ते' वे प्रहले बहे झए बुद्धिहीन 'असिरियावाई-अभियावादिनः' अक्रियावादी संतपि-सतीमपि' विचमान किरियं-क्रिया' क्रिया को 'ण पस्संति-न पश्यन्ति' देखते नहीं हैं वे लोक क्यों नहीं देखते' सो कहते हैं-निरुद्धपना-निरुद्धप्रज्ञाः' वे लोग ज्ञानावरणीया. दिके उद्घ होने से जिनके सम्यक् ज्ञानादि आच्छादित है ऐसे है
શૂન્યતા વાદિયેના મતનું નિરાકરણ કરવા માટે શાસ્ત્રકાર કહે છે કે'जहाहि अंधे' या
Avt-'जहाहि-यथा' म 'अंधे-अन्वः' भाध मया 'हीणनेतेहोननेन.' मनी पछी नी माभनु ते न श पाभ्यु डाय मेवे । पु३५ 'जोइणावि सह-ज्योतिषारि सह' ही विरेन। प्रश साथै हावा छतi ५'रूबाई-रूपाणि' परतुना २१३५२ 'जो पस्सति-न पञ्चति' हेमता नथी. "एवं-एवम्' मे प्रमाणे 'ते-ते' ३ ५। वामां मावेत मुद्धि पाना 'अकिरियावाई-अक्रियावादिनः' मठियावाई या 'संत'पि- सतीमपि' विद्यमान मेवी 'किरिय-क्रिया' याने 'ण परसंति-न पश्यन्नि' हेमता नथी. मे । भ मत नथी १ से ४७ छ -'निरुद्धपन्ना-निरुद्ध प्रज्ञाः' ते। ज्ञाना१२९. યાદિના ઉદય થવાથી જેઓના સમ્યક્ જ્ઞાન વિગેરે ઢંકાઈ ગયા છે, એવા