Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. शु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २७७ मूलम्--केई निमित्ता तहिया भवंति,
सिंचि विपडिएति जाणं। ते विजभावं अगहिजलाणा,
__ आहंसु विना परिमोखमेव ॥१०॥ छाया- कानिचिनिमित्तानि तथ्यानि, भवन्ति केचित्तद् विपर्येति ज्ञानम् ।
ते विधाभावमनधीयानाः, आहुविद्या परिमोक्षमेव ॥१०॥ अन्वयार्थः - (केइ निमित्ता) पूर्वो कनिमितेषु कानिचिनिमित्तानि (तहिया) तथ्यानि-पत्यानि (१.वं ने) भवन्ति तथा (केसिंचि) केषांश्चिनिमित्तवेदिनाम्
'केइ निमित्ता' इत्यादि।
शब्दार्थ-केइ निमित्ता-कानिचिनिमित्लानि' कोई कोई निमित्त 'तहिया-तथ्यानि' सत्य 'भवंति-भवन्ति' होते हैं तथा 'केसिचिकेषांचित्' किसी किसी निमित्तवादीका 'ते गाणं-तत् ज्ञानस्' वह निमित्तज्ञान 'विप्पडिएति-विपर्येति' विपरीत होता है अतः 'ते-ते' वे अक्रियावादी 'विज्जभाव-विद्याभावाम्' ज्ञान प्राप्त कराने वाली विद्याको 'अणहिज्जमाणा-अनधीयानाः' अध्ययन न करते हुए निमित्तको कहते हैं वह सत्य न होने से विज्जापलिमोक्खमेव-विद्यापरिमोक्षमेव' उस विद्याका ही त्याग करने को 'आहंसु-आहुः' कहते हैं ॥१०॥ ___ अन्धयार्थ-पूर्वोक्त निमित्तों में से कोई निमित सत्य होते है और किन्हीं :निमित्तवेत्ताओं का ज्ञान विपरीत होता है। इस कारण
'वेइ निमित्ता' या
शहाय---- 'वे निमित्ता-केचिन्निमित्तानि 0 निमित्त 'तहियातथ्यानि' साया 'भवति-भवन्ति' उय छ ता 'केसिंचि-पांचित्' is निभित्तानि ते णाण-तत् ज्ञानम्' से निमित्त शान 'विप्पडिएप्ति-विपति' Get RD य छे. तेधी 'वे-ते' त त मठियावाहिये। 'विज्जभाव-विधाभावम्' ज्ञान प्राप्त ४२पावणा विधान 'अणहिलमाणा-अनधीयानाः' मययन या विना निमित्त ४ छे. ते साया न वाथी 'विजापलिमोक्ख मेव-विद्यापरिमोक्षमेव' में विधाना त्या ४२५। 'आह'सु-आहुः, ४७ छ ॥१०॥
અવયાર્થ–પૂક્તિ નિમિત્તામાંથી કેઈ નિમિત્ત સત્ય હોય છે. અને કેઈ નિમિત્તવેત્તાઓનું તે જ્ઞાન વિપરીત હોય છે, એથી અયિાવાદી વિદ્યાનું