Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गले नहि विद्यामधीयाना विद्यात्यागमिच्छन्ति न चोपदिशन्ति वाऽन्येषां कृते। अतो ज्ञानक्रियेवि द्वयमेव मोक्षहेतुरिति भावः ॥१०॥ ___ एवं तर्कवळेनाऽक्रियाऽक्रियावादिमतं निराकृत्य सम्पति-क्रियावादिमतप्रदर्शनपूर्वकं तन्मतं निराकरोति सूत्रकार:-'ते एवमवखंति' इत्यादि । मूलम्-ते एव मक्खंति समिच्च लोग,
तहा तहा समणा माहणा य । संयं कडं गन्नकडं च दुक्खं,
आहंसु विजाचरणं पमोक्खं ॥११॥ छाया-त एव सारख्यान्ति समेत्य लोक, तथा तथा श्रमणा माहनाश्च ।
स्वयं कृतं नान्यकृतं च दुःखम्, आहुश्च विद्याचरणं प्रमोक्षम् ॥११॥ स्याग नही कर देते और न दूसरों को विद्या के त्याग का उपदेश करते हैं । अतएव तात्पर्य यह है कि ज्ञान और क्रिया दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं ॥१०॥
इस प्रकार तर्क के बल से अक्रियावादियों के मत का निराकरण करके अब क्रियावादियों के मत को दिखला कर सूत्रकार उसका निराकरण करते हैं-'ते एक्सक्खंति इत्यादि ।
शब्दार्थ--'ते-ते' वे स्मणा-श्रमणा:' श्रमण अर्थात् शाक्यादि, भिक्ष 'य-च' तथा 'माहणा-नाहना' माहन अर्थात् ब्राह्मण एवं- एवम्' पूर्वोक्त प्रकार ले 'अक्खंति-आख्यान्ति' प्रतिपादनकरते हैं वे क्या प्रतिपादन करते है ? इसके लिये सूत्रकार कहते हैं-'लोग-लोकम्' કરી દેતા નથી. તેમજ બીજાઓને વિદ્યાના ત્યાગનો ઉપદેશ પણ આપતા નથી, તેથીજ કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે જ્ઞાન અને ક્રિયા અને મોક્ષના માર્ગ છે. ૧
આ પ્રમાણે તર્કના બળથી અકિયાવાદિના મતનું ખંડન કરીને હવે ठियावाहियाना मत तावीर सूत्रा२ तेनु नि२६४२ ४२ छ. 'ते एवमक्नति' त्यादि
शहाथ--वे' से 'समणा-श्रमणा:' श्रम अर्थात शायाह निक्षु 'य-च' तथा 'माहणा-माहना' मान मर्थात् प्राझार 'एव-एवम् पूर्वरित
थी 'अक्खति-आख्यान्ति' प्रतिपादन ४२ छे. तेथे शु. प्रतिपाहन ४२ छ मतपतi सूत्र४२ ४३ छे -'लोग-लोकम्' २था१२ अरे माम