Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थचोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् २७५
अन्वयार्थ:- (संवन्छर) साम्मत्सरस्-मुभिक्षदुर्मिक्षादिमतिपादकं ज्योतिःशास्त्रम् १, (सुविणं) स्वप्नं-शुभाशुभस्वप्नप्रतिपादकं शास्त्रम् २, (लक्खणं च) लक्षणं -आन्तरवाहलक्षणफलपतिपादकं शास्त्रद्वयम् ४ । (निमित्त) निमित्त निमित्तशास्त्रम्-शुभाशुभशकुनादिद्योतकम् ५, (देहब) देहंच-शरीरम्, तत्र संजातं मपतिलकादिकमङ्गस्फुरणादिकं च, मौमान्तरिक्षरूपोत्पातद्वयप्रतिपादकं शास्त्रद्वयं (४) 'देहच-देहंच' देह में रहे हुवे मष तिल आदि से फल को बताने वाला शास्त्र (५) 'उप्पाश्यंच-औपातिकं च भूकम्पादिरूप उत्पात से फल पत्तानेवाला शास्त्र (६) 'एयं-एतत्' ये 'अट्ठ-अष्टाङ्गम्' आठ प्रकारके शास्त्र को 'अहित्ता-अधीत्य' पढकर 'लोगति-लोके' जगत् में यहवे-बहवः' अनेक मनुष्य 'अणागताई-अनागतानि' भविष्यकाल संबंधी बातों को 'जाणंति-जानन्ति' जानते हैं यह सुविदित है ॥९॥, __अन्वयार्थ-(१) संवत्सर-सुभिक्ष-दुर्भिक्ष आदि कहने वाला शास्त्र (२) स्वप्न- शुभ या अशुभ स्वप्नों का फल प्रतिपादन करने वाला शास्त्र (३-४) लक्षण-आन्तरिक और बाहय लक्षणों को दर्शाने वाले शास्त्र (५) निमित्त-निमित्त शास्त्र-शकुन आदि का निरूपण करनेवाला, शास्त्र (६) देह-देह में होने वाले मष, तिल आदि का तथा अंग फड़कने का फल प्रदर्शित करने वाला शास्त्र (७-८) औत्पातिकभूमि संबंधी और आकाश संबंधी उत्पातों का फल दिखलाने वाले शुन विगैरेना ३१ मतावापाणु निमित्त शास (५) 'वह च-देहच' शरी૨માં રહેલા મષ-મસા, તલ વિગેરે પરથી ફળ બતાવવા વાળું શાસ્ત્ર (૬) 'उप्पाइय च-औत्पातिकं च' ५ विगैरे अत्यतिथी ३१ मतावाणु (८) 'एयं-एतत्' मा 'अटुंग-अागम्' 13 प्रा२न! Aaने 'अहित्ता-अधीत्य' मीन 'लोगंसि-लोके' मा 'दहवे-वह्व.' पण मनुष्य। 'अणागताईअनागतानि' सवय ४॥ण समधी पात 'जाणंति-नानन्ति' तो . એ સુવિદિત છે. લા ___मन्या-(१) सवत्सर-सुण विगेरे गताना३ ज्योति:शा२ (२) २१न-शुम मा मशुल पनामा ५१ मताना३ २ (३४) લક્ષણ-આંતરિક અને બાહ્ય લક્ષણોને બતાવનારૂં શાસ્ત્ર (૫) નિમિત્ત શાસ્ત્ર (6) -शरीरमा थवावाणा भष-तस, वि३ने, तथ! म ३२४ानु मताવનારૂં શાસ્ત્ર (૭-૮) પાતિક ભૂમિ સંબંધી અને આકાશ સંબંધી ઉત્પાતેના ફલ બતાવાર અને શાસ્ત્ર આ અષ્ટાંગ અર્થાત્ આઠ અંગોવાળા