Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरण स्वरूपनिरूपणम्
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परिज्ञानम्, न उपसंख्येति अनुपसंख्या, तया अनुपसंख्यया अर्थज्ञांना भावेन- 'ति' इतिविनयादेव केवलान्मोक्षो भवति न ज्ञानादिभिरिति । 'उदाह'. उदाहु: - उदाहरन्ति - कथयन्ति । किं कथयन्तीत्याह - 'स' स्वः स्वकीयःअस्मदीयः अर्थः सर्वस्य विनयप्रतिपच्चा मोक्षप्राप्तिलक्षणः 'अच्छे', अस्माकम् 'ए' एवमेव- पूर्वोक्तरूप एव 'ओभास' अवभासते - सत्यवया प्रतिभासते प्रतीयते इत्यर्थः । केवलविनयादेव मोक्षः माप्यते, एवमेवास्माकमवभासते । इति कथनं तेषां मोहविजृम्भितमेव । तथाहि - 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः" इति स्थितिः, तत्र केवल विनया देवेति कथन न केवलं युक्तिरहितम् अपितु - ज्ञानादिरहित नियोपेतोऽपि सर्वतस्तिरस्कृतो भवतीति । पश्चाद्धनाऽक्रियात्रादिमत निराकरोति - 'लवावंसंकी' कवापराङ्किनः लवं कर्म तस्मात् - अपशङ्कितम् अप
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ही मोक्ष कहते हैं । वे ज्ञानादि की आवश्यकता नहीं मानते। उनका क्या कहना है, सो कहते हैं - हमें अपना प्रयोजन अर्थात् मोक्षमाप्तिविनय की प्रतिपत्ति से ही प्रतीत होती है, अर्थात् हमें ऐसा ही जान पड़ता है कि विनय से ही मुक्ति प्राप्त होती हैं । उनका यह कथन, मोहका ही परिणाम है । सत्य यह है कि मोक्ष-ज्ञान, और क्रियासें ही होता है। ऐसी स्थिति में केवल विनय से ही मोक्ष कहना, युक्तिशून्यं है, यही नहीं, ज्ञान आदि से रहित पुरुष विनय से युक्त होने पर भी
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सब के तिरस्कार के योग्य बनता है ! - सेक
केरा में क्रियावादी के मत का निराकरण किया गया है । लब का अर्थ है कर्म । जिसका स्वभाव लव पर शंका करने
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છે કે ધારતવિક જ્ઞાનને અભાવ હાવાના કારણે મૂઢ મતિ માલ અજ્ઞાની એવા જૈનયિકા કુળ વિનય માત્રથી જ મેાક્ષ કહે છે, તેઓ જ્ઞાન' વિગેરની આવ स्थम्ता' भानता नथी.. तेनुं भ्थन ! छे ? ते तावतां सूत्रमेर छेडे अभिने' सायागु प्रयोजना अर्थात् भोक्षप्राप्ति विनयनी प्रतियतिथी" अतीत_थाय छे.,अर्थात्['अभने भन भथाय छे !-विमयथा भुस्ति પ્રાપ્ત થાય છે. તેઓનુ આ કથન માર્હ જ પરિણામ છે. સત્ય તો એ છે है-मालज्ञान भने डियाथी थाय छे, या स्थितिमा ठेव विमंयथोक भाक्ष, थवानु', 'हेवुः ते -युक्ति शून्य छे, गोट नहीं' ज्ञान विशेश्थी रहित પુરૂષ વિનયથી ચુક્ત! હાવા છતાં પશુ બધાના તિરસ્કારને પાત્ર અને છે, q - ગાથાના ઉત્તરાધમાં અક્રિયાવાદીના મતનું નિરાકરણ કરવામાં આવેલું
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छः सवने ! अर्थ से प्रभा छे, भेस्भाव सव पर शर्मा वी
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सू० ३३