Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रे
तज्जीवतच्छरीरखादिमतं तथा अकारकवादिसांख्यमतं च निरसितुमाह - 'जे तेउ' इत्यादि ।
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मूलम्
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जे ते उ वाईणा एवं लोए तेसिं कओ सियो ।
१०
७
११ ९
तमाओ ते तमं जंति, मंदा आरंभनिस्सिया || १४ ||
छाया
ये तेतु वादिन एवम् लोकस्तेपां कुतः स्यात् । तमसस्ते तमो यान्ति मन्दा आरंभनिः श्रिताः || १४ ||
इस प्रकार सात रूपों द्वारा आत्मा को प्रकृति बद्ध करती हैं, आत्मा नहीं वही प्रकृति फिर उसे मुक्त करती है ।
यह आकारकवादियों का मत है । आत्मा कर्त्ता नहीं है, ऐसा कहते हुए सांख्य अकारकवादी हैं, अतएव धृष्ट हैं ||१३||
तज्जीवतच्छरीरवादी तथा अकारकवादी सांख्य के मत का निराकरण करने के लिए कहते हैं, -- “ जे तेउ" इत्यादि ।
शब्दार्थ - 'पव-एवम्' इस पूर्वोक्त प्रकार से 'दाइणो वादिन' तज्जीवतच्छरीरयादी कहते हैं 'तेसि तेपां उनके मत से 'लोप-लोकः' परलोक 'कओसिया-कुतः स्यात्' कैसे हो सकता है ? 'ते - ते' वे वादी 'आर भनिस्सिया - आरम्भनिश्रिता ' प्राणातिपातादि आरम्भमें आसक्त 'मदा-मन्दा पापके फलके नहीं जानमेवाले मूर्ख' 'तमाओ - तमस' एक अन्धकार से 'तम - तम' दूसरे अज्ञानको 'जति यान्ति' प्राप्त करते हैं ||१४||
આ પ્રકારે સાત રૂપે દ્વારા આત્માને પ્રકૃતિ યુદ્ધ કરે છે—આત્મા કરતા નથી એજ પ્રકૃતિ ત્યાર બાદ તેને મુકત કરે છે, આ પ્રકારને અકારકવાદીઓનેા મત છે, આત્મા કર્તા નથી, આ પ્રકારની માન્યતા ધરાવનારા સાખ્યાને અકારકવાદી કહે છે અન્ન આ પ્રકારની તેમની માન્યતા ખરેખર ધૃષ્ટતા રૂપ જ માનવી જોઇએ ાગા. ૧૩૫
હવે સૂત્રકાર તજીવતચ્છારીરવાદીએ તથા અકારકવાદીએના (સ ખ્યાના ) મતનું उन वा भाटे नीचे सूत्र हे छे – ” जे तेउ” प्रत्याहि
शब्दार्थ -- 'एवम् एवम्' आयूर्वेत प्रस्थी 'वाइणो-वादित' तव तरीवाहीमा उहे छे 'तेसिं तेपां ' तेयोना भतभा 'लोप- लोक' परसो 'कभोसिया कुतः स्यात्' डेवी रीते डही शाय ? ' ते-ते' ते भतवाहीये। 'आर भनिस्सिया - आरंभनिश्रिता प्राणातिपात विगेरे मारलभा आसस्त भेवा तेथे 'मदा- मन्दा' पायना जने नही लघु नारा भूर्णा 'तमाओ - तमस' भेड अ धारा थी अज्ञानथी 'तम-तम' जील अज्ञानने 'जति यान्ति प्राप्त रे ॥१४॥