Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 696
________________ टीका प्र... २ ३ साधूनां परिषहोपसर्ग सहनौपदेशः नावाने अनुयायिनः, तेऽपि इत्थमेव प्रतिपादयिष्यन्ति, प्रतिपादितवन्न प्रतिपादति च ज्ञानदर्शनचारित्रतपांसि मोक्षमार्गत्वमिति ॥ २० ॥ पूर्वगुणानां नामधेयं वदति सूत्रकारः - 'तिविहेण वि' इत्यादि । मृदम् # २ ३. ४ निविद्वेण विपाण मा हणे आयहिए अणियाणसंवुडे । ܼܿܝ ८ ७ ९. १० १२ ११ एवं सिद्धा अणतसो संपड़ जे य अणागयावरे ॥ २१॥ छाया fafe प्राणान मा हन्यादान्महिताऽनिदानसंवृतः 1 एवं सिद्धा अनन्नगः संप्रति ये चानागता अपरे ||२१|| कारण रहा है और कहेंगे । जो ऋभदेव या महावीर के अनुयायी हैं, वे भी ऐसा ही प्रतिपादन करेंगे या उन्होंने ऐसा ही प्रतिपादन किया है कि शान दर्शन पारित्र और न ही मोक्षमार्ग हैं ||२०|| राजकार अब उन गुणों का नामोल्लेख करते हैं- “तिविहेण वि" इत्यादि । शातिविषेण वि-त्रिविधेनापि मन वचन और काय इन तीनों ने पण माण-प्राणान मा हन्यान् प्राणियों का वध नहीं करना चाहिये 'नामितिः अपने हिनमें प्रवृत्त 'अणियाण संबुडे - अनिदानसंवृतः म्याटिक उरहित नीनगृप्तियों से गुप्त रहना चाहिए | 'एवं - एवम्' इतर - अनंतशः अनन्त जीव 'सिद्धा-सिद्धा' सिद्ध हुवे हैं नया संप-सति वर्तमान कालमें जेय अरे अणागया- ये च अपरे अनागताः' और भी दूसरे अनंत जीवसिद्धिको प्राप्त करेंगे || २१॥ કેન કરી વ ાન, દર્શન સ્ત્રિ અને તપ રૂપ ત્રિના જ મેાક્ષની પ્રાપ્તિ કરાવનાર स्पर्धा नाद नारों के साथ 44 sales are and Gear - "fafado fa" Seula विवि-त्रिवेागेन, वथन अने क्षय मा श्रायुर्थी 'पाण काही प्राधानमा भाग ना यो 'थायदि आत्महित.' अनि घुडे-निदानसंत.' वर्ग पनी उन्कारडित भएमा 'क्षणं तमो-अनंतशयनविनिता संग संप्रति ' वतं भान क्षणमां 'जे य अलक्षिणमा पालुजी अनंत व ܐܰܐ ܐܐܐܐܐܢܐ

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