Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 698
________________ सग योधिनो टीवा प्र अ अ उ. साधनां परिपहोपसग महनोपदेशः मिनि म पनामामार्यनीतियां न कुर्यात् । एनावना अहिंसावनोपदेशः कृतः, टापत्रक नपा महावनानाम् अम्तेयादीनाम् एतानि अहिंसावतरक्षणे पाटियार पानि सन्ति पुनः 'अणियाणसंयुडे' अनिदानगंवृतः-निदान-मायागल्यनिदान मियादर्शनगन्यरूपम् , तद्रहितोऽनिनानः, तथा इन्द्रिय नाइन्द्रियमनापासाय: मंतः विगप्तिगतः, एवम्-ययोक्तप्रकारकानुष्ठानेन 'अणतसे।' अनन्न अंग जीयाः भृनकाले 'मिद्धा' सिद्धि संप्राप्ता तथा 'संपइ जे य यो माया प्रति वर्गमानकालिका महाविटेहे. ये चानागता अपरे, वर्गमानका ये वियन्ने, गे चाऽनागनकालेपि, ये जीवाः तेऽपि यथोदितसमाउनुष्टानान निन्दि याम्यन्तिा२१॥ मुर्मा गमी जंम्यामिनं ग्राह-'एवं से उदाहु' इत्यादि। एवं ग्रे उदाह अणुत्तरनाणी अणुनरदंमी अणुत्तरणाणदंसपधरे अम्हा नायपुत्त भगवं वेसालिए वियाहिए ॥त्ति वैमि॥२२॥ : कार में जीरहिया न करे । इस कथन के द्वारा अहिंसा बन का उपदेश किया गया। यह कथन अहिंसावन की रक्षा के लिए बाडके समान अस्तेय यदि अन्य गमम्न व्रतों का उपलक्षण है । तथा निदान नामक गल्य से नानी.न्द्रिय नो इन्द्रिय नया मन बचन काय से संबर युक्त हो अर्थात् नीन गतियो मे गाल हो । उस प्रकार से आचरण करता हुआ पुरुए अवश्य नि, प्राम करा ।' | एसा करके अनन्त जीयों ने मिद्धि ग्राम की है। मान कार में माावित क्षेत्र में जो आज विद्यमान है और भविष्यकाल में नीग मी पनीरत धर्म ग अनुष्ठान करके ही मिद्धि प्राप्त करेंगे ||२१||

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