Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रतागसत्र __ अन्वयार्थः-- (एवं) एवम् उक्तप्रकारेण (एगे) एके केचन नियनिवादिनः 'पासत्या' पार्श्वस्थाः-पार्श्व मोक्षमार्गवहिर्भागे स्थिताः, अथवा पागस्था इनि कर्मवन्धरूपपाशबद्धाः सन्ति, ते (भुजो) भूयो भूयः (विप्पगभिया) विप्रगल्भिताः धाष्टर्यमासादिताः धृष्टाः सन्ति नियतिवादमाश्रित्यापि दानपुण्यादि क्रियायां प्रवर्तनात् (एवं) एवम् अनेन रूपेण (उवटिया संतो) उपस्थिताः सन्तः नियतिवादे तिष्ठन्तः सन्तः (ते) ते नियतिवादिनः (न दुक्खविमोक्खया) न दुःखविमोक्ष काः जन्ममरणादि दुःखाद् न विमुक्ता भवन्ति सम्यग जानविकलत्वात्तपाम् ॥५॥
शब्दार्थ-एवं-एवम्' इसप्रकार 'एगे एके' कोई नियतिवादी 'पासन्या पार्श्वस्थाः' पाश्वस्थ कहते है 'ते--त' वे 'भुजो-भूयः' चार-बार 'विप्पगन्भिया --विप्रगल्भिताः' नियति को कर्ता कहने की धृष्टता करते है ‘एवं-एवम्' इसप्रकार 'उबट्ठियासंतो-उपस्थिताः सन्तः' उपस्थित होकर भी 'ते--ते' वे 'न दुक्खविमोक्खिया-न दुःखविमोक्षकाः' जन्ममरणादि दुःख छुडाने में समर्थ नहीं है ॥५॥
-अन्वयार्थ--- इस प्रकार कोई कोई नियतिवादी 'पासत्थ, है। पामन्थ, गा के दो संस्कृतरूप होते हैं--पार्श्वस्थ और पागस्थ । पार्श्वस्थ का अर्थ है-मोक्षमार्ग से वाहर स्थित और पाशस्थ का तात्पर्य है कर्म बन्धनों से वेधे हुए। वे वार वार धृष्टता करते हैं । उनकी धृष्टता यह है कि वे नियतिवाद को स्वीकार करके भी दानपुण्यादि क्रिया में प्रवृत्ति करते हैं । इस प्रकार नियतिवाद में स्थित वे नियतिवादी दुःखों से मुक्ति नहीं पा सकते, क्योंकि वे अज्ञानी हैं ॥५॥ ___शाय-'एव -पवम्' या प्रमाणे 'एगे-पके' नियती पाही 'सत्या-पार्श्व स्था' पाश्वस्थ उपाय छे ते-ते' तेसो 'भुजो-भूय' वारंवार 'विप्पगम्पिया-विप्रगल्भिता' नियतिने ता पानी वृत्त। ४२ छ. 'वं-पवम्' मा दरीत उवटिया संतो- उपस्थिता सन्त' नियतिस्वाहमा लपस्थित थने ५ 'ते-ते' ते 'न दुपखविमोक्खिया-न दु खविमोक्षका' म भ२५५ ३४ी हुथी पाने शति भान यता नयी ॥५॥
मन्वयार्थ આ પ્રકારે કઈ કઈ નિયતિવાદી “પાર્થ” છે ‘પાસ’ શબ્દના બે સંસ્કૃત રૂપ થાય છે (૧) પાર્શ્વસ્થ અને (૨) પાશથ પાર્થસ્થ મોક્ષમાર્ગની બહાર રહેલાને પાર્શ્વ કહે છે અને પાશસ્થ એટલે કર્મબન્ધન વડે બંધાયેલા તેઓ વારંવાર ધૃષ્ટતા કરે છે. તેમની ધૃષ્ટતા એ છે કે તેઓ નિયતિવાદમાં માનતા હોવા છતા પણ દાન, પુણ્ય આદિ ક્રિયાઓમાં પ્રવૃત્ત રહે છે આ પ્રકારના તે નિયતિવાદીઓ દુખમાથી મુક્ત થઈ શક્તા नथी, १२ ते अज्ञानी छे.