Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 689
________________ संकृतागसूत्र ६७७ छाया सर्वे स्वकर्मकल्पिता अव्यक्तेन दुःखेन प्राणिनः । हिण्डन्ति भयाकुलाः शठा जातिजरामरणैरभिद्रुताः।।१८॥ अन्वयार्थ-- (सव्वे पाणिणो) सर्वे बसस्थावराः प्राणिनो जीवाः, (सयकम्मकप्पिया)स्वककर्मकल्पिताः, स्वकृतेन ज्ञानावरणीयादिना कर्मणा कल्पिताः सूक्ष्मवादरपर्याप्तकापर्याप्तकैकेन्द्रियभेदेन व्यवस्थिताः (अवियत्तेण दुहेण) अव्यक्तेन दुःखेन अपरिस्फुटेन शूलाद्यलक्षितस्वभावेन व्यक्तेन च दुःखेनासातावेदनीयस्वभावेन (जाइजरामरणेहि) जातिजरामरणैः जाति-जन्म जरा-वर्द्धक्यं मरणं-शरीरत्यागः, एभिः (अभिता) अभिभुताः पीडिताःसन्तः(भयाउला)भयाकुलाः (सढा) शठा:शठकर्मकारित्वात् (हिंडंति) हिण्डन्ति-परिभ्रमति तत्तद्योनौ घटीयंत्रन्यायेनेति ॥१८॥ ____ शब्दार्थ-'सव्वे पाणिणो--सर्वे प्राणिनः' सब त्रस स्थावर प्राणी 'सयकम्मकप्पिया--स्वकर्मकल्पिता:' अपने अपने कर्मों से नाना अवस्थाओं से युक्त हैं 'अवियत्तेण दुहेण--अव्यक्तेन दुःखेन' और सव अव्यक्त-अलक्षित-दुःख से दुःखी है 'जाइजरामरणेहि--जातिजरामरणः' जन्म-जरा-वाईकय और मरण से 'अभिद्रुता-अभिद्रुताः' पीडित 'भयाउला--भयाकुलाः' और भय से आकुल 'सढा--शठाः' शठजीव 'हिंडंति--हिण्डन्ति वार वार संसार चक्र में भ्रमण करते हैं।॥१८॥ अन्वयार्थ ..स और स्थावर सभी प्राणी अपने द्वारा उपार्जित ज्ञानावरणीय आदि कर्मा से सूक्ष्म वादर, पर्याप्त अपर्याप्त एकेन्द्रिय आदि के भेद में रहे हुये अव्यक्त तथा व्यक्त दुःख से एवं जन्म जरा मरण के द्वारा पीडित होकर शठतापूर्ण कर्म करने के कारण घटीयंत्र की तरह भ्रमण करते हैं ॥१८ ___हाथ - ‘सने पाणिणो सर्व प्राणिना' या त्रस स्थावर प्राणी सयकम्मकप्पिया-स्वकर्म कल्पिता' पातपाताना भाथी भने प्रा२नी अवस्थामाथी युरत छ. 'अवियत्तेण दुहेण-अव्यक्तेन दुखेन' भने यी ४ मन्यत--साक्षित हुथी भी छ 'जाइजरामरणेहि -जातिजरामरण' म २५ पादश्य भने भरथी 'अभिवृत्ताअभिद्रुता.' पीरित 'भयाउला-भयाकुला' भने लयथी माणसढा-शठा' शव 'हिड ति-हिण्डन्ति' पार पा२ स सास्यमा भ्रम ४२ छे. ॥ १८ ॥ . सूत्राथ સ, સ્થાવર આદિ સમસ્ત જીવો પિતપતાના તાર ઉપરાજિત જ્ઞાનાવરણીય આદિ કમેને કારણે સૂમ, બાદર, પર્યાપ્ત, અપર્યાપ્ત એકેન્દ્રિય આદિ ભેદો રૂપે રહેલા છે તેઓ અવ્યક્ત તથા વ્યક્ત દુખથી અને જન્મ, જરા અને મરણના દુખથી યુકત છે. શઠતા પૂર્વક કર્મ કરવાને કારણે તેઓ રહેટની જેમ સ સારમાં ભ્રમણ કરતા રહે છે. ૧૮

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