Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 659
________________ समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. साधूनां परिपहोपसर्ग सहनोपदेश ६४७ ___अन्वयार्थः(पच्छा) पश्चात् (मा) मा (असाहुया भवे) असाधुता कुगतिगमनादि रूपा भवेत्, अतः (अच्चेहि) अत्येहि विपयसंगादात्मानं मोचयेत्यर्थः, (अप्पगं) आत्मानम् (अणुसास) अनुशाधि-आत्मनः शासनं कुरु (असाहु) असाधुः हिंसादिकारी पुरुषः (अहियं च) अधिकं च (सोयइ) शोचति (से) सः (थणइ) स्तनति सशब्दं निःश्वसिति तथा (बहू परिदेवइ) बहु परिदेवते (बहु) अत्यधिकं परिदेवते विलपति ॥७॥ टीका'पच्छा' पश्चात् 'मा असाहुया भवे' असाधुता मा भवेत् दुर्गतौ गमनं न भवतु इति विचार्य, 'अच्चेहि अप्पगं' अत्येहि विषयसेवनतः शब्दार्थ-'पच्छा-पश्चात्' पीछे 'मा-मा' नहीं असाहुया भवे--असाधुता भवेत दुर्गतिगमन हो इसलिये 'अच्चेहि-अप्पगं' 'अत्येहि-आत्मानम्' विषयसेवन से अपने आत्माको अलग करो 'अणुशास-अणुशाधि' शिक्षा दो 'असाहु-असाधुः' हिंसादि करने वाला असाधु पुरुष 'अहियं च-अधिकं च अधिक रूपसे 'सोयदशोचति' शोक करता है 'से-स: वह 'थणइ-स्तनति' अधिक चिल्लाता है तथा 'वहू परिदेवइ-बहु परिदेवते' अधिक रूप से विलाप करता है ॥७॥ -अन्वयार्थ - ___ वाद में कुगति गमन आदि रूप असाधुता न हो अतः अपनी आत्मा को विपयों से पृथक् कर लो, आत्मा पर शासन करो असाधु पुरुप को संयम रहित पुरुप को शोक करना पड़ता है ऊची श्वासे लेनी पड़ती है और अत्यन्त विलाप करना पड़ता है ॥७॥ -टीकार्थपश्चात् असाधुता न हो अर्थात् दुर्गति में गमन न करना पडे, ऐसा शहाथ-पच्छा-पश्चात् पाछ 'मा-मा' नन 'असाहुया भवे-अमाधुता भवेत्' हुतिगमन थाय असा भाटे 'अच्चेहि अत्येहि अप्पग आत्मानम् विषय सेवनथी मात्माने मदाग ४ मने पाताना मात्माने 'अणुशास-अणुशाधि' शिक्षा माप। 'असाहु-असाधु' हिसा वगेरे ४२वावा असाधु५३ष 'अहिय च-अधिक च' अधिः ३५थी सोयइ-शोचति' ।४२ छ 'से-स"ते 'थणइ-स्तनति' पधारे मुभी पा छे तथा बहु परिदेवई - बहु परिदेवते' पधारे ३५थी. विला५ ४२ छ. ॥ ७॥ -सूत्रार्थપાછળથી (આ ભવનું આયુષ્ય પૂરું કરીને) દુર્ગતિગમન આદિ અસાધુતાની પ્રાપ્તિ ન થાય, તે ભાવનાથી આત્માને વિષયમાથી અલગ કરી દો. આત્મા પર શાસન કરે આ સાધુ પુરુષને (સ યમ રહિત પુરુષને) શેક કરવો પડે છે, નિસાસા નાખવા પડે છે અને અત્યન્ત વિલાપ કરવો પડે છે પાછા -टी :મનુષ્યભવ સબધી આયુષ્ય પૂરું કરીને અસાધુતા પ્રાપ્ત ન થાય-દુર્ગતિમાં જવું ન

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