Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मृनकृतागसूत्रे
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सूत्रकार:-'अदक्खुव' इत्यादि।
मूलम्
४
अदक्खुव दक्खुवाहियं सद्दहसु अदबखुदसणा । हंदि हु सुनिरुद्धदसणे मोहणिज्जेण कडेण कम्मुणा ॥११॥
छाया
अपश्यवत् पश्यव्याहृतं श्रद्धत्स्व अपश्यदर्शन । गृहाण मुनिरुद्धदर्शनः मोहनीयेन कृतेन कर्मणा ॥११॥
अन्वयार्थ:(अदक्खुव) अपश्यवत् पश्यतीति पश्यो न पश्योऽपश्योऽन्धः तद्वत् तत्सदृश !
इस प्रकार इस लोक संबंधी सुख के ही अमिलापी और पारलौकिक सुख का तिरस्कार करने वाले नास्तिक के कथन का उत्तर सूत्रकार ग्यारहवी गाथा में देते हैं- "अदक्खुव” इत्यादि ।
___ शब्दार्थ-'अदक्खु व-अपश्यवत्' हे अन्धे के समान पुरुप 'दऋग्वाहियंपश्यव्याहृतम्' सर्वज्ञके कहे हुए आगमों में 'सहम-श्रद्धत्स्व' श्रद्धा करी 'अदक्खुदंसणा-अपश्यदर्शन' हे असर्वज्ञ दर्शन वाले ! 'मोहणिज्जेण-योहनीयेन' मोहनीय 'कडेण-कृतेन' स्वयं किये हुए 'करमुणा-कर्मणा' कर्म से मुनिरुद्धदसणे-मुनिरुद्धदर्शनः' जिनकी ज्ञान दष्टि नष्ट होगई है वह सर्वज्ञोक्त आगो को नहीं मानता है 'हंदि हु-जानीहि' ऐसा निश्चय जानो ॥११॥
-अन्वयार्थहे अपश्यवत् अर्थात् अन्धे के समान सर्वज्ञकथित आगम पर श्रद्धा
આ પ્રકારના આ લેકના સુખની અભિલાષાવાળા અને પારલૌકિક સુખનો તિરસ્કાર કરનારા નાસ્તિકેના કથનને ૧૧મી ગાથામાં સૂત્રકાર આ પ્રમાણે ઉત્તર આપે છે – "अदक्खु” त्या
हाथ-'अ.क्खु ब-अपश्यवत्र माना समान ५३५ । 'दक्खुवाहिय - पश्यव्याहृतम्' सजग डे माजभामा 'सदहसु-श्रद्धत्स्व श्रद्धा राणे 'अदवखु दसणा-अपश्यदर्शन' है | मस शनवायो। 'मोहणिज्जे ग-मोहनीयेन' भाडनीय 'कडेण-कृतेन' पाते ४२८ 'कम्मुणा-कर्मणा' भथी 'सुनिरुद्धद सणे-सुनिरुद्धदर्शन' भनी ज्ञानटि न2 23 छ ते सर्वात आजमाने मानतो नथी 'ह दिहुजानीहि मे निश्चित । ॥ ११ ॥
सूत्राथ
હે અપશ્યવત્ ' (આધળા સમાન પુરુષ) સર્વર દ્વારા કથિત આગમ પર શ્રદ્ધા