Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थ घोधिनी टीका प्र श्रु अ २ उ २ स्वपुत्रेभ्यः भगवदादिनाथोपदेश' ६४३ पुनरप्युपदिशति सूत्रकार:-~-एवं कामेसण, इत्यादि ।
मूलम्एवं कामेसणं विऊ अजसुए पहएज संयवं। कामी कामे ण कामए लद्धे वोवि अलद्धे कण्हुई ॥६॥
छायाएवं कामैपणायां विद्वान् अद्यश्वः प्रजह्यात्संस्तवम्। कामी कामान कामयेत् लब्धान् वाप्यलव्धान् कुतश्चित्।।६॥
अन्वयार्थ (एवं) एवम् उपर्युक्तप्रकारेण(कामेसण)कामेपणायां शब्दाद्युपभोगरूपायां(विऊ) विद्वान् निपुणः (अज्जसुए) अद्यश्वः (संथवं ) संस्तवम् परिचयं कामैपणाम्
सूत्रकार पुनः उपदेश देते हैं-"एवं कामेसणं"
शब्दार्थ-'एवं-एवम्' उपर्युक्त प्रकार से 'कामेसण-कामेपणायाम्' शब्दादि विषयों के अन्वेपण में 'विऊ-विद्वान्' निपुण पुरुप 'अन्जमुए-अद्यश्वः' आज या कल 'संथचं-संस्तवम् विपय भोग की एपणा को 'पहएज-प्रजह्यात्' छोड़ देवें एसा विचार ही करता है परंतु 'कामी-कामी' कामी पुरुप 'कामे-कामान्' काम भोगों की 'न कामए-न कामयेत्' कामना न करे एवं 'लद्धे वावि-लब्धान् अपि' प्राप्त हुए कामभोगों को भी 'अलद्ध-अलब्धान्' न मिले के समान 'कण्हुइ-कुतश्चित्' उसमें कभी आसक्ति न करें ॥६॥
-अन्वयाथेइस प्रकार शब्दादिरूप कामों की गवेपणा में निपुण पुरुप ऐसा' सूत्रधार quी ॥ प्रभारी पहेश मापेछ-" एव कामेसण " त्या
शार्थ - 'एव -एवम्' उपर्युत प्राथी 'कामेसण-कामेपणायां' शर्ट कोरे विषयाना अन्वेषणमा विऊ-विद्वान्' निपुण ५३५ 'अजसुए-अद्यश्व' या मथवा दो 'सथव -स स्तवम्' विषयमांगनी मेषाने 'पहएज-प्रजह्यात्' छोडी मेवा दिया२४ ४२ छ ५२तु छोडते नथी, ५२तु 'कामी-कामी अभी ५३५ 'काभे-कामान् अम. भागानी 'न कामए-न कामयेत्' मना ना ४२ मेवम 'लद्धे वावि लब्धान् अपि प्राप्त थयेस सभागाने पशु 'अलद्धा-अलव्धान्' ना भक्ष्याना समान 'कण्हुइ-कुतश्चित्' तेभा કદી પણ આસક્તિ ના કરે છે ૬ - એજ પ્રમાણે શબ્દાદિ રૂપ કામોની ગવેષણ (ધ, તલાશ) કરવામાં નિપુણ :
-सूत्र-