Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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। सूत्रकृतागसूत्र ज्ञानदर्शनचारित्रतपांश्येव मोक्षस्य कारणम् , इति दर्शयितुमाह-'अहपास'
इत्यादि ।
. मूलम्-
..
...
अह पास विवेगमुट्ठिए अवितिन्ने इह भासई धुर्व। पाहिसि आरं कओ पर वेहास कम्मेहिं किञ्चह ॥८॥
. . . . . छाया- । ।
अथ पश्य विवेकमुत्थितोऽवितीर्ण इह भापते ध्रवम् । ... ... ज्ञास्यस्यारं कुतः परं विहायसि कर्मभिः कृत्यते ॥८
" ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मोक्षके कारण, है, यह दिखलाने के लिए कहते हैं- 'अह पास' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'अह--अथ' इसके पश्चात् 'पास--पश्य' देखो 'विवेगं--विवेकं परिग्रह को छोडकर अथवा संसारको अनित्य जानकर 'उट्टिए--उत्थितः प्रवृज्या गृहण करते हैं। 'अवितिन्ने--अवितीर्णः संसार सागरको पार नहीं कर सकते हैं. 'इह-इह' इससंसारमें 'धुवं--ध्रुवं मोक्षको 'भासइ---भाषते' केवल भापणे ही करते हैं हे शिष्य' तुमभी उनके मार्ग में जाकर 'आर-आरम्, इस लोकको 'परं-परम्' तथा परलोकको 'कओ-कुतः कैसे 'णाहिसिं-ज्ञास्यसि जान सकते हो? वे अन्य तीर्थजन 'वेहासे-विहायसि' मध्यम में ही 'कम्मेहिकर्मभिः' कर्मों के द्वारा 'किच्चइ-कृत्यन्ते' पीडित होते हैं ॥८॥
હવે સૂત્રકાર એ વાતનું પ્રતિપાદન કરે છે કે જ્ઞાન, દર્શન, ચારિત્ર અને તપ જ भाडमा १२ भूत मने छ-'अह पास" त्याह', हाथ-अह-अथ' मानी पछी 'पास-पश्य' दुवा विवेग -विवेकम्', पारड़ने छोटीन मथवा संसारने अनित्य' समलने 'उहिए-उत्थित' प्रन्याने घड १२.छ.. 'वितिन्ने-अवितीर्ण' संसार सागरने पार नथी 1 शत 'इह-इह मा संसारमा 'धुव:-धूवम् भाक्षनु भासइ-भाषते' उपस लाए .११ ४२ छे. शिष्य ! तमे पy तममा भाभी ने 'आर-आरम्' मा ने 'पर-परम्' तथा ५२४ने 'कओकतः पाशत 'णाहिसि-शास्यसि ती शश। तेसो भन्यतीथिन वेहासे-ull विहायसि' मध्यमा २४ 'कम्मेहि-कमभिः' ना द्वारा 'किचई-कृत्यन्ते' हु भी थाय छे.