Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १ अकारकदिवादि-सांख्यमतनिरूपणम् १९५ भावस्यापत्तेः । किंच-यदि आत्मा कर्त्ता न स्यात् । तदा भवच्छास्ने एव प्रदर्शितानाम् “स्वर्गकामो यजेत" “मा हिंस्यात्सर्वभूतानि" इत्यादि विधिनिषेधशास्त्राणां का गतिः स्यात् ? का वा गति भवेत्-"श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः" इत्यादि मोक्षकारण-प्रतिपादकवचसाम् । भवन्मान्य वेदव्यासरेव-"कर्ता शास्त्रार्थवत्त्वात्" इति वेदान्तसूत्रे जीवानां कर्तृत्वप्रतिपादनं कृतं, तदपि कथं संगतं भवेत् । तथाऽऽत्मनोऽकर्तृत्वे-"पंचहा गई नत्थि" पंचधापंचप्रकारा-नारक, तिर्यनराऽमरमोक्षलक्षणा गतिरपि न संभवेत् । ततश्च सांख्यशास्त्राऽनुयायिनां मोक्षोद्देशेन संन्यासविधानं योगाद्यनुष्ठानं च सर्वमेव होता है। ऐसा न हो तो लकडी ओर कुल्हाडी का संयोग होने से दूसरी चीजों के भी दो टुकडे होने लगेंगे। . इसके अतिरिक्त आत्मा यदि कर्ता न हो तो आपके शास्त्र में ही दिखलाए हुए "स्वर्गकामो यजेत " अर्थात् स्वर्ग का अभिलापी यज्ञ करे 'मा हिंस्यात्सर्वभूतानि" अर्थात् किसी भी प्राणी की हिंसा न करे इन विधि निषेध रूप वाक्यों की क्या दशा होगी ! और "इस आत्मा का श्रवण" मनन और निदिध्यासन करना चाहिए "इत्यादि मोक्ष के प्रतिपादक वचनों का क्या होगा ? आपके मान्य वेदव्यासने ही “कर्ता शास्त्रार्थवत्त्वात् “ इस वेदान्त सूत्र में जीवों के कर्तृत्व का प्रतिपादन किया है, वह भी कैसे संगत होगा ? तथा आत्मा को अगर अकर्ता मानोगे तो मनुष्यगति देवगति, नरकगति, तिर्यचगति और मोक्षगति यह पांच प्रकार की गति भी संभव नहीं होगी । फिर तो सांख्यशास्त्र का अनुसरण करने वालों के लिए मोक्ष રૂપ હોય છે જે એવું ન હોત તે લાકડી અને કુહાડીને સગ થવાથી બીજી ચીજોના પણ બે ટુકડા થઈ જતા હોત.
ने मामा पत्ता न डाय, तो मायना खो द्वारा १० प्रतिपाहित, "स्वर्ग कामो यजेत" स्वगनी मलिदाषावा यज्ञ ४२वो नये “मा हि स्यात्सर्वभूतानि" आध પણું જીવની હિંસા ન કરવી જોઈએ” આ વિધિનિષેધ રૂપ વાક્યોની સગતતા જ કેવી રીતે માની શકાય? અને આ આત્માનું શ્રવણુ મનન, અને નિદિધ્યાસન કરવું જોઈએ ઈત્યાદિ મેક્ષનું પ્રતિપાદન કરનારા વાને પણ કેવી રીતે સગત ગણી શકાય? આપ भने मान्य छ। सेवा मुनि वेहव्यासे ४] "फर्ता शास्त्रार्थवत्वात् २॥ वहान्त सूत्रमा જીવના કર્તુત્વનુ જ પ્રતિપાદન કર્યું છે તેને પણ કેવી રીતે સગત માની શકાય?
તથા આત્માને જે અકર્તા માનશે, તે મનુષ્યગતિ, દેવગતિ, નરકગતિ, તિર્યંચગતિ અને મોક્ષગતિ, આ પાંચ પ્રકારની ગતિ પણ સભવી શકશે નહી. એવી પરિસ્થિતિમાં