Book Title: Sutrakrutanga Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र श्रु अ १ चार्वाकादिवौद्धान्तवादीनामकलवादित्वम् २४९
अन्वयार्थः पूर्ववदेव । व्याख्या निगदसिद्धा, नवरं-ते. वादिनः गर्भस्य गभगमनस्य पारगा न भवन्ति गर्भाद् गर्भान्तरपरिभ्रमणं तेषां न नश्यति॥२२॥ पुनरप्याह-'तेणा वि संधि' इत्यादि ।
। मूलम्तेणा वि संधि णचाणं न ते धम्मविओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं न ते जम्मस्स पारगो ॥२३॥
छायातेनापि संधि ज्ञात्वा न ते धर्मविदो जनाः ।
ये ते तु वादिन एवं न ते जन्मनः पारगाः ॥२३॥ ज्ञाता 'न-न' नहीं हैं 'जे-ये' जो 'ते उ-ते तु वे एवं-एवम्' ऐसे 'वाइणो-वादिन' वादी हैं 'ते-ते' वे 'नगभस्स पारगा-गर्भस्य पारणा न' गर्भ को पार नहीं कर सकते हैं ॥२२॥
-अन्वयार्थःइस गाथा का अर्थ भी पूर्ववत् ही है। व्याख्या भी स्पष्ट है । विशेष इतना समझना कि-वे वादी गर्भ के पारगामी नहीं होते अर्थात् उनका एक गर्म से दूसरे गर्भ में परिभ्रमण करना बंद नहीं होता है ॥२२॥
फिर कहते हैं- " ते णावि" इत्यादि ।
शब्दार्थ-ते-ते' वे स धिं-सन्धिम्' सन्धिको ‘णावि णच्चा-नापि ज्ञात्वा' नहीं जानकर क्रियामें प्रवृत्त होते हैं 'ते जणा धम्मविओ न-ते जना धर्मविद न' वे लोग विट' भने तराना'न-न' नथी. 'जे-ये' रेश्मा एवं-एवम्' से शत ना 'वाइणोवादिनः' पाही। छे. 'तेउ-ते तु तेमा 'न गम्भस्स पारगा-गर्भस्य पारगा न' ગર્ભને પાર કરી શક્તા નથી. રરn
__-मन्वयाथઆ ગાથાને અર્થ પણ પૂર્વવત્ જ છે. વ્યાખ્યા પણ સ્પષ્ટ છે. અહીં એટલું જ વિશેષ કથન સમજવાનું છે કે
તે અન્યતીથિકે ગર્ભના પારગામી થતા નથી એટલે કે તેમનું એક ગર્ભમાથી બીજા ગર્ભમાં પરિભ્રમણ કરવાનું બંધ પડતુ નથી ! ગાથા રર છે
4जी सूत्रा२ ४ छे -"तेणावि" त्याहि
शहाय-ते-ते' तेसो 'सधि-सन्धिम्' सधान ‘णाविणच्चा-नापि ज्ञात्वा' तया विना लियामा प्रवृत्ति ४२ छ, 'ते जणा धम्मविओ न-ते जना धर्मविद न