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संख्या १ ]
हैं। कुछ अश्लील गीतों को लोगों के सामने रखकर जो घृणित प्रचार किया गया है वह निन्द्य है । इससे स्वयं मारवाड़ी नवयुवक भी अपने गीत-साहित्य को घृणित समझने लग गये हैं । किन्तु उन गीतों के सौन्दर्य की कहानी आज भी वहाँ बड़ी दिलचस्पी के साथ सुनी जाती है ।
संगीतमय मारवाड़
मारवाड़ में गीतों का यथेष्ट प्रचार है, और वहाँ उनका उपयोग बड़े सुन्दर रूप से किया जाता है। वहाँ कई ऐसी श्रेणी के लोग बसते हैं जिनका पेशा ही गीत गाना है । उनमें से एक श्रेणी के गायक 'भोपाभोपी' कहलाते हैं; उनमें एक स्त्री और एक पुरुष होता है। जिस समय संसार शान्ति की गोद में विश्राम करता है, उसी समय प्रायः इनका गाना प्रारम्भ होता है। ठीक दो पहर रात बीते ये लोग गाना प्रारम्भ करते हैं और प्रातःकाल तक गाते रहते हैं। इनके गाने का विषय अमर आत्माओं की कथायें एवं विशेष कर 'पाऊजी' की कहानी होती है। इन पाऊजी ने बड़ी कठिनाई के पश्चात् राजस्थान में ऊँटों का प्रचार किया था । अनेक लड़ाइयाँ लड़ने के बाद इन्हें काबुल से ऊँटों के लाने में सफलता मिली थी। 'भोपाभोपी' के गीत का कथानक एक पर्दे पर चित्र के रूप में लिखा रहता है। जब वे गीत गाते हैं उस समय श्रोता संसार के दुःखों को भूलकर आनन्द से श्रोत-प्रोत हो जाते हैं ।
उस समय सत्तर
मारवाड़ के ग्रामों में ब्राह्म मुहूर्त में उठकर पनिहारे कुत्रों पर जाकर पानी भरते हैं । अस्सी हाथ गहरे कुएँ के भीतर की तरफ़ मुंह करके वे ज़ोर ज़ोर से गीत के रूप में पानी के ऊपर थाने का अपने साथी को संकेत करते हैं। उनके गीतों की प्रतिध्वनि कुएँ से निकलकर निस्तब्ध गाँव में फैल जाती है । उस मौलिक राग के द्वारा शान्ति का अनन्त प्रवाह प्रवाहित होने लगता है । दूर से सुनाई पड़नेवाले उन गीतों का राग हृदय में शान्ति, शक्ति, कोमलता और निर्मलता की वृद्धि करता है ।
उसी ब्राह्म मुहूर्त में ग्रामीण स्त्रियाँ उठकर चक्की पोसा करती हैं । चक्की पीसने के साथ वे गीत भी गाती
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श्रीयुत बालकृष्ण पोद्दार मारवाड़ी नवयुवक हैं। अपने प्रान्त के जन-गीत का आपने यहाँ सुन्दर परिचय दिया है। नीचे का चित्र भोपाभोपी का है और उसके बाद स्वयं लेखक का।
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