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द्वात्रिंशत्तमं पर्व
अथ तत्र क्षणं नोखा निद्रान्तौ धृतककटौ । अर्धरात्रे महाध्वान्ते निश्शब्दे शान्तमानवे ॥१॥ विधाय जानकी मध्ये जिनं नत्वा सकार्मुको । सुवेषौ प्रस्थितौ दीपैः पश्यन्ताविव कामिनः ॥२॥ कश्चित् सुरतखिन्नाङ्गो बाहुपारवर्तिनीम् । कृत्वा प्राणसमा निद्रामतिगाढां निषेवते ॥३॥ कृत्वापराधकः पूर्व कोपिनी कश्चिदङ्गनाम् । प्रत्याययत्यलोकेन शपथेन पुनः पुनः ॥४॥ अपरो मानमुत्सृज्य कान्तया स्मरतप्तया । कृतकं कोपमायातः सुवाग्भिः परिसाव्यते ॥५॥ सुरतायासखिन्नाङ्गा देहे कस्यचिदङ्गना। लीना तत्त्वमिव प्राप्ता गाढां निन्द्रा निषेवते ॥६॥ नवसङ्गमनां कश्चिज्जायां विमुखवर्तिनीम् । कृच्छात् प्रस्तावमानीय सम्माषयति संमदी ॥७॥ कस्मैचित्पूर्ववैगुण्यं कथयत्यङ्गनाखिलम् । अपरो वेदयत्यस्मै विस्रब्धः कृतमाननः ॥८॥ कश्चित् परगृहं प्राप्तो धूर्तः सङ्कुचिताङ्गकः । उद्वासयति मार्जारं वातायनकृतस्थितिम् ॥९॥ अपरः कृतसंकेतां शून्यदेवकुलान्तरे । कुलटामाकुलीभूतो मुहुरुत्थाय वीक्षते ॥१०॥ चिरादुपगतं कश्चिद् घनरोषाभिसारिका । ताडयत्युत्तरीयेण बध्वा मेखलया खलम् ॥११॥ अमिसारिकया साकमन्यः प्राप्य समागमम् । शुनोऽपि पदशब्देन याति त्रासमनुत्तमम् ॥१२॥
अथानन्तर राम-लक्ष्मण उस मन्दिरमें कहीं क्षण एक निद्रा लेकर अर्धरात्रिके समय जब घोर अन्धकार फैल रहा था, लोगोंका शब्द मिट गया था, और मनुष्य शान्त थे तब जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर कवच धारण कर तथा धनुष उठाकर चले। वे सीताको बीचमें करके चल रहे थे। दोनों ही उत्तम वेषके धारक थे तथा दीपक हाथमें लिये थे जिससे ऐसे जान पड़ते थे मानो मण्डपादि स्थानोंमें कामी जनोंको देख ही रहे थे ॥१-२॥ उन्होंने देखा कि जिसका शरीर सम्भोगसे खिन्न हो रहा है ऐसा कोई पुरुष अपनी प्राणवल्लभाको भुजारूप पंजरके मध्य रखकर अत्यन्त गाढ़ निद्राका सेवन कर रहा है ।।३।। अपराध करनेवाले किसी पुरुषने पहले तो अपनी स्त्रीको कुपित कर दिया और पीछे बार-बार झूठी शपथके द्वारा उसे विश्वास दिला रहा है ||४|| कोई एक पुरुष कृत्रिम कोपकर पृथक् बैठा है और उसकी स्त्री कामसे उत्तप्त हो उसे मधुर वचनोंसे शान्त कर रही है॥५॥ सरतके श्रमसे जिसका शरीर खिन्न हो रहा था ऐसी कोई स्त्री पतिके शरीरमें इस तरह लीन होकर गाढ़ निद्रा ले रही है जिस तरह कि मानो वह पतिके साथ अभेदको ही प्राप्त हो चुकी हो ॥६॥ कोई एक पुरुष लज्जाके कारण विमुख बैठी नवोढ़ा पत्नीको बड़ी कठिनाईसे अनुकूल कर हर्षपूर्वक उसके साथ वार्तालाप कर रहा है ॥७॥ कोई एक स्त्री अपने पतिके लिए उसके द्वारा पहले किये हुए सब अपराध बता रही है और वह उसे मनाकर निश्चिन्ततासे उसका समाधान कर रहा है ।।८।। कोई एक धूतं पुरुष अपने शरीरको संकुचित कर दूसरेके घर पहुंचा है और वहाँ झरोखेमें बैठे बिलावको वहाँसे हटा रहा है ॥९॥ किसी पुरुषने अपनी कुलटा प्रेमिकाको सूने. मठमें आनेका संकेत दिया था पर उसने आने में विलम्ब किया इसलिए वह व्याकुल हो बार-बार उठकर उसे देख रहा है ॥१०॥ किसी अभिसारिकाका प्रेमी देरसे आया था इसलिए वह अत्यन्त कुपित हो उसे मेखलासे बांधकर उत्तरीय वस्वसे पीट रही है ॥११॥ और कोई एक मनुष्य अभिसारिकाके साथ समागम प्राप्त कर कुत्तेके
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१. विति कामिनः म. । २. कृतापराधकः ज. ।
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