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त्रिपञ्चाशत्तमं पर्व
तावत्तोयदवाहेन समं संनह्य वेगतः । पश्चादिन्द्रजितो लग्नो द्विपस्यन्दनमध्यगः ॥२१५॥ हनूमान्यावदेतेल समं योद्धुं समुद्यतः । प्राप्तं तावदितं तस्य बलं यन्मेघपृष्ठगम् ॥ २१६ ॥ बाह्यायां भुवि लङ्कायां महाप्रतिभयं रणम् । जातं हनूमतः खेटैः लक्ष्मणस्येव दौषणम् || २१७ || युक्तं सुचतुरैरश्वै रथमारुह्य पावनिः । समुद्धृत्य शरं सैन्यं राक्षसानामधावत ॥२१८॥ अथेन्द्रजितवीरेण पाशैर्माहोरे गैस्सितः । चिरमायोधितो नीतः पुरं किंचिद्विचिन्तयन् ।।२१९।। ततो नगरलोकेन विश्रब्धं स निरीक्षितः । कुर्वन् मञ्जनमासीद्यो विद्युद्दण्डवदीक्षितः ॥ २२०॥ प्रवेशितस्य चास्थान्यां तस्य दोषान् दशाननः । कथ्यमानान् शृणोति स्म तद्विद्भिः पुरुषैर्निजैः ॥२२१॥ दूताहूतः समायातः किष्किन्धं स्वपुरादयम् । महेन्द्रनगरध्वंसं चक्रे तं च वशं रिपोः ॥ २२२ ॥ साधूपसर्गमथने द्वीपे दधिमुखाह्वये । गन्धर्व कन्यकास्तिस्रः पद्मस्याभ्यनुमोदिताः ।।२२३॥ विध्वंसं वज्रशालस्य चक्रे वज्रमुखस्य च । । कन्यामभिलषन्यस्य बहिरस्थापयद् बलम् || २२४ ॥ भग्नं पुष्पनगोद्यानं तत्पाल्यः विह्वलीकृताः । बहवः किङ्करा ध्वस्ताः प्रपादि च विनाशितम् ||२२५|| घटस्तन विमुक्तेन पुत्रस्नेहान्निरन्तरम् । पयसा पोषिताः स्त्रीभिर्वृक्षका ध्वंसमाहृताः ॥२२६॥ वृक्षैर्वियोजिता वल्ल्यस्तरलायितपल्लवाः । धरण्यां पतिता भान्ति विधवा इव योषितः ॥ २२७॥ फलपुष्पभरानम्रा विविधास्तरुजातयः । श्मशानपादपच्छाया एतेन ध्वंसिताः स्थिताः ॥ २२८॥
हनुमानरूपी हाथी बाहर आया || २१४ || त्योंही हाथियोंके रथपर सवार इन्द्रजित मेघवाहनके साथ तैयार होकर शीघ्र ही उसके पीछे लग गया ॥ २१५ ॥ हनुमान् जब तक इसके साथ युद्ध करनेके लिए उद्यत हुआ तब तक मेघ - वाहन के पीछे लगी सेना आ पहुँची ॥ २१६ ॥ तदनन्तर लंकाकी बाह्यभूमिमें हनुमान्का विद्याधरोंके साथ उस तरह महाभयंकर युद्ध हुआ जिस प्रकार कि लक्ष्मणका खरदूषण के साथ हुआ था || २१७|| हनुमान् चार घोड़ोंसे जुते रथ पर सवार हो बाण खींचकर राक्षसोंकी ओर दौड़ा || २१८ | | अथानन्तर चिरकाल तक युद्ध करनेके बाद जो वीर इन्द्रजितके द्वारा नागपाशसे air for गया था ऐसा हनुमान् कुछ विचार करता हुआ नगरके भीतर ले जाया गया || २१९|| जो पहले तोड़-फोड़ करता हुआ विद्युद्दण्डके समान देखा गया था वही हनुमान् अब नगरवासियोंके द्वारा निश्चिन्ततापूर्वक देखा गया || २२० ॥ तदनन्तर वह रावणको सभामें ले जाया गया वहाँ रावणने अपने विज्ञ पुरुषोंके द्वारा कहे हुए उसके अपराध श्रवण किये || २२१ ॥ विज्ञ पुरुषोंने उसके विषय में बताया कि यह दूतके द्वारा बुलाये जाने पर अपने नगरसे किष्किन्ध नगर गया । वहाँसे लंका आते समय इसने राजा महेन्द्रका नगर ध्वस्त किया तथा उसे शत्रुके आधीन किया || २२२ ॥ दधिमुखनामक द्वीपमें मुनियुगलका उपसर्गं दूर किया और गन्धर्वराजकी तीन कन्याएँ रामको वरनेके लिए उत्सुक थीं सो उनका अनुमोदन किया || २२३ || राजा वज्रमुखके वज्रकोटका विध्वंस किया तथा उसकी कन्या लंकासुन्दरीको स्वीकृत कर उसके नगरके बाहर अपनी सेना रक्खी ||२२४ || पुष्पगिरिका उद्यान नष्ट किया, उसकी रक्षक स्त्रियोंको विह्वल किया, बहुतसे किंकर नष्ट किये और प्रपा- पानी पीने आदिके स्थान विनष्ट किये ॥ २२५॥ स्त्रियोंने जिन्हें पुत्र के समान स्नेहसे घट रूपी स्तनोंसे छोड़े हुए जलके द्वारा निरन्तर पुष्ट किया था वे छोटे-छोटे वृक्ष इसने नष्ट कर दिये हैं || २२६ || जिनके पल्लव चंचल हो रहे हैं ऐसी लताएं इसने वृक्षोंसे अलग कर पृथिवोपर गिरा दी हैं जिससे वे विधवा स्त्रियोंके समान जान पड़ती हैं ||२२७॥ फल और फूलों के भारसे झुकी हुई नाना वृक्षोंकी जातियाँ इसके द्वारा नष्ट-भ्रष्ट कर दी गयी हैं जिससे वे
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१. महोरगसम्बन्धिभिः । २. बद्धः । स्मितः ख । ३ तत्पाल्या विह्वलाः कृताः ब । प्रपा पानीयशालिका तत्प्रभृति |
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