Book Title: Padmapuran Part 2
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 413
________________ ३९५ द्वाषष्टितमं पर्व मालिनीवृत्तम् इति निजचरितस्यानेकरूपस्य हेतोय॑तिगतभवजस्यावश्यलभ्योदयस्य । इह जनुषु विचित्रं कर्मणो भावयन्ते फलमविरतयोगाजन्तवो भूरिभावाः ॥९९॥ व्रजति विधिनियोगाकश्चिदेवेह नाशं हतरिपुरपरश्च स्वं पदं याति धीरः । विफलितपृथशक्तिबन्धनं सेवतेऽन्यो रविरुचितपदार्थोद्भासने हि प्रवीणः ॥१०॥ इत्यार्षे श्रीरविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे शक्तिसंतापाभिधानं नाम द्वाषष्टितम पर्व ॥६॥ ओर देखते हुए उसने उन्हें शीघ्र ही छुड़ानेकी आशा की ॥९८॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! नाना प्रकारके भावोंको धारण करनेवाले जोव, अपने विविध आचरणोंके अनुरूप पूर्वभवोंमें जो कर्मका संचय करते हैं उन्हें उसका उदय अवश्य ही भोगना पड़ता है और उसके उदयके अनुरूप ही वे इस जन्म में निरन्तर नाना प्रकारका फल भोगते हैं ॥९९।। इस संसारमें कर्मयोगसे कोई नाशको प्राप्त होता है, कोई धीर-वीर शत्रुको नष्ट कर अपने पदको प्राप्त होता है, कोई अपनी विशाल शक्तिके निष्फल हो जानेसे बन्धनको प्राप्त होता है और कोई सूर्यके समान योग्य पदार्थों को प्रकाशित करने में समर्थ होता है ।।१००॥ इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य कथित पद्मपुराणमें लक्ष्मणके शक्ति लगनेके दःखका वर्णन करनेवाला बासठवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥६२॥ १. भूतिभावा: म.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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