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पद्मपुराणे
कुर्वन्तु सर्वथा देवास्तव जीवितपालनम् । विशल्यतां दुतं गच्छ सर्वलोकमनोहर ॥ १३ ॥ एवं विलापिनी कृच्छ्राच्छोकिनी जनकात्मजा । मावप्रीतिभिरानीता खेचरीभिः प्रसान्त्वनम् ||१४| ज्ञायते देवि नायापि निश्चयो देवरस्य ते । अतो न वर्तते कत्तु मेतस्मिन् परिदेवनम् ॥१५॥ मव धीरा प्रवीराणां भवत्येवेदृशी गतिः । भवन्ति च प्रतीकाराश्चित्रं हि जगतीहितम् ॥१६॥ इति विद्याधरीवाक्यात्किंचित्साऽभूदनाकुला । श्रण्विदानीं यदेतस्मिञ्जातं लक्ष्मणपर्वणि ॥ १७ ॥ 'दूoगृहद्वारं पुरुषश्चारुदर्शनः । प्रमामण्डलवीरेण प्रविशन्निति नोदिता ॥ १८ ॥ कस्स्वं कस्य कुतो वाऽसि किमर्थं वा विविक्षसि । तिष्ठ तिष्ठ समाचक्ष्व नात्राविदितसंगमः ||१९|| सोsahar मे मासः साग्रः प्राप्तस्य वर्तते । पद्मं समाश्रयामीति प्रस्तावो न स्वलभ्यत ॥२०॥ अधुना दर्शये शीघ्रं जीवन्तं यदि लक्ष्मणम् । द्रष्टुं भवति वाञ्छा वस्तत्रोपायं वदाम्यहम् ॥ २१ ॥ इत्युक्ते परितुष्टेन भामण्डलमहीभृता । दत्त्वा प्रतिनिधि द्वारे नीतोऽसौ पद्मगोचरम् ॥२२॥ संप्रयुज्य प्रणामं च स जगाद महादरः । मा "खित्स्थास्त्वं महाराज कुमारो जावति ध्रुवम् ||२३|| सुप्रभा नाम मे माता जनकः शशिमण्डलः । देवगीते पुरेऽहं च चन्द्रप्रतिमसंज्ञकः || २४ ॥ जातुचिद्वि चरन् व्योम्नि वेलाध्यक्षस्य सूनुना । सहस्रविजयाख्येन वैरिगाऽहं निरीक्षितः ॥ २५ ॥ ततो मैथुनिकावैरं स्मृत्वा क्रोधं समीयुषः । तस्य जातं मया सार्द्धं रणं सुभटदारुणम् ॥२६॥
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आश्चर्यंके कार्यं करनेवाले तुम्हें फिर भी देख सकूँगी ? ॥ १२॥ देव सब प्रकारसे तुम्हारे जीवनक रक्षा करें और सब लोगोंके मनको हरण करनेवाले तुम शीघ्र ही शल्यरहित अवस्थाको प्राप्त हो ||१३|| इस प्रकार विलाप करनेवाली शोकवती सीताको भावसे स्नेह रखनेवाली विद्याधरियोंने सान्त्वना प्राप्त करायी ||१४|| उन्होंने समझाते हुए कहा कि हे देवि ! तुम्हारे देवरका अभी तक निश्चय नहीं जान पड़ा है इसलिए इसके विषय में विलाप करना उचित नहीं है ।। १५ ।। धैर्य धारण करो, वीरोंकी तो ऐसी गति होती ही है । जो हो चुकता है उसके प्रतीकार होते हैं यथार्थ में पृथिवी की चेष्टा विचित्र है || १६ || इस प्रकार विद्याधरियोंके कहने से सीता कुछ निराकुल हुई । गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! अब इस लक्ष्मण पर्वमें जो कुछ हुआ उसे श्रवण कर ||१७|| अथानन्तर इसी बीच में एक सुन्दर मनुष्य डेरेके द्वारपर आकर भीतर प्रवेश करने लगा तब भामण्डलने उसे रोकते हुए कहा कि तू कौन है ? किसका आदमी है ? कहांसे आया है ? और किस लिए प्रवेश करना चाहता है ? खड़ा रह, खड़ा रह, सब बात ठीक-ठीक बता, यहाँ अपरिचित लोगोंका आगमन निषिद्ध है ।। १८-१९।। इसके उत्तरमें उस पुरुषने कहा कि मुझे यहाँ आये कुछ अधिक एक मास हो गया । मैं रामका दर्शन करना चाहता हूँ परन्तु अब तक अवसर ही प्राप्त नहीं हुआ ||२०|| इस समय उनका दर्शन करता हूँ । यदि आप लोगोंकी लक्ष्मणको शीघ्र ही जीवित देखने की इच्छा है तो मैं आपको इसका उपाय बताता हूँ ||२१|| उसके इतना कहते हो राजा भामण्डल बहुत सन्तुष्ट हुआ। वह द्वार पर अपना प्रतिनिधि बैठाकर उसे रामके समीप ले गया ||२२|| उस पुरुषने बड़े आदरसे रामको प्रणाम कर कहा कि हे महाराज ! खेद मत कीजिए, कुमार निश्चित ही जीवित हैं ||२३|| मेरी माताका नाम सुप्रभा तथा पिताका नाम चन्द्रमण्डल है । मैं देवगीतपुरका रहनेवाला हूँ तथा चन्द्रप्रतिम मेरा नाम है ||२४|| किसी समय मैं आकाश में धूम रहा था उसी समय राजा वेलाध्यक्ष के पुत्र सहस्रविजयने जो कि हमारा शत्रु था मुझे देख लिया ||२५|| तदनन्तर स्त्री सम्बन्धी वैरका स्मरण कर वह क्रोधको प्राप्त हो गया जिससे उसका लभ्यते ।
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१. दुःखग्रहद्वारं म । २. विवक्षसि म । ५. विद्यास्त्वं ख. । ६. रणे म. ।
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३. समन्वश्च ( ? ) म. । ४. ननु लभ्यते म । न तु
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