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सप्तपञ्चाशत्तमं पर्व
"ह्लादनश्चपलइचोलइचलश्चञ्चल फादयः । गजादिभिरिमैर्युक्तैर्निर्ययुर्भास्वरैः रथैः ॥५८॥ कियन्तः कथयिष्यन्ते नाम्ना प्राग्रहराः नराः । अध्यर्द्ध पञ्चमीको ट्यः कुमाराणां स्मृता बुधैः ॥५९॥ विशुद्ध राक्षसानूकाः कुमारास्तुल्यविक्रमाः । प्रख्यातयशसः सर्वे विज्ञेया गुणमण्डनाः ॥६०॥ आवृतास्ते समुद्युक्तः कुमारैर्मारविभ्रमाः । बलिनो मेघवाहाद्याः कुमारेन्द्रा विनिर्ययुः ॥ ६१ ॥ अर्ककीर्तिसमो भूत्या दशानन महाप्रियः । इन्द्रजिन्निर्ययौ कान्तो जयन्त इव धीरधीः ॥ ६२ ॥ विमानमर्कसंकाशं नाम्ना ज्योतिःप्रभं महत् । कुम्भकर्णः समारूढस्त्रिशूलास्त्रो विनिर्गतः ॥ ६३ ॥ मेरुशृङ्गप्रतीकाशं लोकत्रितयशब्दितम् । विमानं पुष्पकाभिख्यानारूढः शक्रविक्रमः || ६४॥ संछाद्य रोदसी सैन्यैर्भास्वरायुधपाणिभिः । निष्क्रान्तो रावणस्तिग्म किरणप्रतिमद्युतिः ||६५ || स्यन्दनैर्वारणैः सिंहैर्वरा हैः रुरुभिर्मृगैः । सृमरैर्विहगैश्वित्रैः सौरभेयैः क्रमेलकैः ॥ ६६ ॥ ययुमिर्महिषैरन्यैर्जलस्थलसमुद्भवैः । । सामन्ता निर्ययुः शीघ्रं वाहने बहुरूपकैः ॥ ६७॥ भामण्डलं प्रतिक्रुद्धाः किष्किन्धाधिपतिं तथा । हिता राक्षसनाथाय निर्ययुः खेचराधिपाः ||६८ || अथ दक्षिणतो दृष्टा भयानक महास्वनाः । प्रयाणवारणोद्युक्ता मल्लूका बद्ध मण्डलाः ॥६९॥ बान्धतमसा पक्षैर्गृद्धा विकृतनिस्वनाः । भ्राम्यन्ति गगने भीमाः कथयन्तो महाक्षयम् ॥ ७० ॥ अन्येऽपि शकुनाः क्रूरं क्रन्दन्तो भयशंसिनः । बभूवुराकुलीभूता भौमा वैहायसास्तथा ॥७१॥ शौर्यातिगर्वसंमूढा विदन्तोऽप्यशुमानिमान् । महासैन्योन्द्वता योद्धुं रक्षोवर्गा विनिर्ययुः ॥ ७२ ॥
कदम्ब, विटप, भीम, भीमनाद, भयानक, शार्दूलविक्रीडित, सिंह, चलांग, विद्युदम्बुक, ह्लादन, चपल, चोल, चल और चंचल आदि सामन्त हाथियों आदिसे जुते हुए देदीप्यमान रथोंपर आरूढ़ होकर निकले ।।५७-५८ ।। गौतमस्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! नाम ले-लेकर कितने प्रधान पुरुष कहे जावेंगे ? उस समय सब मिलाकर साढ़े चार करोड़ कुमार बाहर निकले थे ऐसा विद्वज्जन कहते हैं ||१९|| ये सभी कुमार विशुद्ध राक्षसवंशी, समान पराक्रमके धारी, प्रसिद्ध यशसे सुशोभित एवं गुणरूपी आभूषणोंको धारण करनेवाले थे ॥ ६०॥ युद्ध के लिए उद्यत इन सब कुमारोंसे घिरे, कामके समान सुन्दर, महाबलवान् मेघवाहन आदि श्रेष्ठ राजकुमार भी बाहर निकले ||६१|| तदनन्तर जो विभूति से सूर्यके समान था और रावणको अतिशय प्यारा था, ऐसा धीर-वीर बुद्धिका धारक सुन्दर इन्द्रजित् जयन्तके समान बाहर निकला ||६२ || त्रिशूल शस्त्रका धारी कुम्भकर्ण, सूर्यके समान देदीप्यमान ज्योतिःप्रभ नामक विशाल विमानपर आरूढ़ होकर निकला ॥ ६३ ॥ तदनन्तर जो तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध मेरुके शिखरके समान सुशोभित पुष्पक विमानपर आरूढ़ था, इन्द्रके समान पराक्रमी था और सूर्यके समान कान्तिका धारक था ऐसा रावण हाथों में नाना प्रकारके शस्त्र धारण करनेवाले सैनिकोंसे आकाश और पृथ्वीके अन्तरालको आच्छादित कर निकला ॥६४-६५ ।। तत्पश्चात् रथ, हाथी, सिंह, सूकर, कृष्णमृग, सामान्यमृग, सामर, नाना प्रकारके पक्षी, बैल, ऊँट, घोड़े, भैंसे आदि जलथल में उत्पन्न हुए नाना प्रकारके वाहनोंपर सवार होकर सामन्त लोग बाहर निकले ॥ ६६-६७।। जो भामण्डल और सुग्रीवके प्रति क्रुद्ध थे तथा रावणके हितकारी थे ऐसा विद्याधर राजा बाहर निकले ||६८ || अथानन्तर जो महाभयंकर शब्द कर रहे थे, जो प्रयाणके रोकने में तत्पर थे तथा जो मण्डल बाँधकर खड़े हुए थे ऐसे रीछ दक्षिणकी ओर दिखाई दिये || ६९ || जिन्होंने अपने पंखोंसे गाढ़ अन्धकार उत्पन्न कर रखा था, जिनका शब्द अत्यन्त विकृत था तथा जो महाविनाशकी सूचना दे रहे थे ऐसे भयंकर गीध आकाश में उड़ रहे थे ||७०|| इस प्रकार क्रूर शब्द करते तथा भयकी सूचना पृथ्वी तथा आकाशमें चलनेवाले अन्य अनेक पक्षी व्याकुल हो रहे थे || ७१ ॥ शूरवीरताके बहुत
देते हुए
१. ह्लदन म. । २. राक्षसनाशाय म. ।
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