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पष्टितमं पर्व हस्तप्रहस्तसद्वीरौ विज्ञाय निहतौ ततः । अन्येधुरुधुरक्रोधा बहवो यो मुद्यताः ॥१॥ मारीचः सिंहजघनः स्वयंभुः शम्भुरूर्जितः । शुकसारणचन्द्रार्कजगद्वीभत्सनिःस्वनाः ।।२।। ज्वरोग्रनक्रमकरा'वज्राख्योद्यामनिष्ठुराः । गंभीरनिनदाद्याश्च संनद्वा रमसान्विताः ।।३।। सिंहसंवृद्धवाहोढस्यन्दनार्पितमूर्तयः । क्षोभयन्तः परिप्राप्ताः कपिकेतुवरूथिनीम् ।।४।। तान् समापततो दृष्टा राक्षसान् पार्थिवान्परान् । इमे वानरवंशाग्राः पार्थिवा योदधुमुद्यताः ।।५।। मदनाङ्करसंतापस्थिताक्रोशनन्दनाः । दुरितानघपुष्पास्वविघ्नप्रीतिंकरादयः ॥६॥ अन्योल्याहूतमेतेषाममवत् परमं रणम् । कुर्वद्भिर्जटिलं व्योम शस्त्रैर्बहुविधैर्धनम् ।।७।। अभिलष्यति संतापो मारीचं समरे तदा । प्रथितः सिंहजघनमुद्यानं विघ्नसंज्ञकः ।।८।। आक्रोशः सारणं पापः शुकाख्यं नन्दनो ज्वरम् । तेषां स्पर्धावतामेवं सुद्धं जातं नियन्त्रितम् ॥९॥ ततः क्लिष्टेन संतापो मारीचेन निपातितः । नन्दनेन हतः कृच्छाज्ज्वरः कुन्तेन वक्षसि ।।१०।। प्रथितः सिंहकटिना विघ्न श्वोदामकीर्तिना । हतोऽथ युद्धसंहारः सवितास्तं समागमत् ॥११॥ श्रुत्वा स्वं स्वं हतं नाथं निमग्नाः शोकसागरे । स्त्रियो विभावरीमेतामनन्तामिव मेनिरे ॥१२॥ अन्येद्यः संततक्रोधाः सामन्ता योदधुमुद्यताः । वज्राख्यः क्षपितारिश्च मृगेन्द्रदमनो विधिः ॥१३॥ शम्भुः स्वयंभुश्चन्द्रार्कास्तथा वज्रोदरादयः । राक्षसाधिपवर्गीयास्तेभ्योऽन्ये वानरध्वजाः ॥१४॥
अथानन्तर हस्त और प्रहस्त वीरोंको मरा सुन दूसरे दिन उत्कट क्रोधसे भरे बहुत-से योद्धा युद्ध करनेके लिए उग्रत हुए ॥१॥ जिनके कुछ नाम इस प्रकार हैं-मारीच, सिंहगघन, स्वयम्भू, शम्भु, अजित, शुक, सारण, चन्द्र, अकं, जगद्वीभत्स, निःस्वन, ज्वर, उग्र, नक, मकर, वज्राख्य, उद्याम, निष्ठुर और गम्भोर, निनद आदि । ये सभी योद्धा कवच धारण कर युद्ध के लिए तैयार थे, वेगसे सहित थे, सिंहों और परिपुष्ट घोड़ोंसे जुते हुए रथोंपर आरूढ़ थे तथा वानरवंशियोंकी सेनाको क्षोभित करते हुए आ पहँचे ॥२-४॥ उन राक्षसवंशी उत्तमोत्तम राजाओंको आते देख वानरवंशके प्रधान राजा युद्ध करनेके लिए उद्यत हुए ।।५।। इनमें से कुछके नाम इस प्रकार हैं-मदन, अंकुर, सन्ताप, प्रस्थित, आक्रोश, नन्दन, दुरित, अनघ, पुष्पास्त्र, विघ्न और प्रोतिकर आदि ॥६॥ आकाशको अत्यन्त जटिल करनेवाले नाना प्रकारके शस्त्रोंसे दोनों पक्षके लोगोंका एक दूसरेको ललकार-ललकारकर भयंकर युद्ध हुआ ||७||
उस सगय युद्ध में सन्ताप, मारीचको चाह रहा था; प्रथित, सिंहजधनको; विघ्न, उद्यामको; आक्रोश, सारणको; पाप, शुकको और नन्दन, ज्वरको; देख रहा था। इस प्रकार स्पर्धासे भरे हुए इन सब योद्धाओंका विकट युद्ध हुआ ।।८-९॥ तदनन्तर क्लेशसे भरे हुए मारीचने सन्तापको गिरा दिया। नन्दनने वक्षःस्थल में भालेका प्रहार कर बड़े कष्टसे ज्वरको मार डाला ।।१०।। सिंहजघनने प्रथितको और उद्यामने विघ्नको मार गिराया। तदनन्तर सूर्य अस्त हुआ और उस दिनके युद्धका उपसंहार हुआ ॥११।। अपने-अपने पतिको मरा सुन स्त्रियाँ शोकरूपी सागरमें निमग्न हुई और उस रात्रिको अनन्त-बहत भारो मानने लगी ।।१२।।
तदनन्तर दूसरे दिन तीव्र क्रोधसे भरे वज्राख्य, क्षपितारि, मृगेन्द्रदमन, विधि, शम्भु, स्वयम्भु, चन्द्र, अर्क तथा वनोदर आदि राक्षस पक्षके और उनसे भिन्न दूसरे वानर पक्षके योद्धा १. वज्राक्षो घाति निष्ठुराः म., क.; वज्राक्षोद्याननिष्ठुराः ज., क.। २. संवृत्त- ज.। ३. क्रोध- ज.। ४. शुकाक्षं म. । ५. वज्राक्षः म. ।
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