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एकोनषष्टितमं पर्व
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दृश्यते बन्धुमध्यस्थ पित्राप्यालिङ्गितो धनी । म्रियमाणोऽतिशरश्च कोऽन्यः शक्तोऽमिरक्षितुम् ॥२८॥ पात्रदानैः व्रतैः शीलैः सम्यक्त्वपरितोषितः । विग्रहेऽविग्रहे वापि रक्ष्यते रक्षितर्नरः ॥२९॥ दयादानादिना येन धर्मो नोपार्जितः पुरा । जीवितं चेष्यते दीर्घ वान्छा तस्यातिनिःफला ॥३०॥
न विनश्यन्ति कर्माणि जनानां तपसा विना । इति ज्ञात्वा क्षमा कार्या विपश्चिद्भिररिष्वपि ॥३१॥
दोधकवृत्तम् एष ममोपकरोति सुचेताः दुष्टतरोऽपकरोति ममायम् । बुद्धिरियं निपुणा न जनानां कारणमत्र निजार्जितकर्म ॥३२॥ इत्यधिगम्य विचक्षणमुख्यैर्बाह्य सुखासुखगौणनिमित्तैः । रागतरं कलुषं च निमित्तं कृत्यमपोज्झितकुत्सितचेष्टेः ॥३३॥ भविवरेषु निपातमुपैति ग्रावणि सज्जति गच्छति सर्पम् । संतमसा पिहिते पथि नेत्री नो रविणा जनितप्रकटत्वे ॥३४॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे हस्तप्रहस्तनलनीलपूर्वभवानुकीर्तनं नामकोनषष्टितमं पर्व ।।५९॥
अथवा जहाँ स्थिर रहता है वहाँ तप तथा दान ही उसकी रक्षा करते हैं, यथार्थमें न देव रक्षा करते हैं और न भाई-बन्धु हो ॥२७|| देखा जाता है कि जो भाई-बन्धुओंके मध्यमें स्थित है, पिता जिसका आलिंगन कर रहा है, जो धनी और अत्यन्त शूरवीर है वह भी मृत्युको प्राप्त होता है, कोई दूसरा पुरुष उसकी रक्षा करने में समर्थ नहीं होता है ॥२८॥ युद्ध हो चाहे न हो सम्यग्दर्शनके साथ-साथ अच्छी तरह पाले हुए पात्रदान, व्रत तथा शील ही इस मनुष्यकी रक्षा करते हैं ।।२९|| जिसने पूर्व पर्यायमें दया, दान आदि के द्वारा धर्मका उपार्जन नहीं किया है और फिर भी दीर्घ जीवनकी इच्छा करता है सो उसकी वह इच्छा अत्यन्त निष्फल है ।।३०।। गौतम स्वामी कहते हैं कि 'तपके बिना मनुष्योंके कर्म नष्ट नहीं होते' यह जानकर विज्ञ पुरुषोंको शत्रुओंपर भी
करनी चाहिए |॥३॥ यह उत्तम हदयका धारक पुरुष मेरा उपकार करता है और यह अतिशय दुष्ट मनुष्य मेरा अपकार करता है। लोगोंको ऐसा विचार करना अच्छा नहीं है क्योंकि इसमें अपने ही द्वारा अर्जित कर्म कारण हैं ||३२।। ऐसा जानकर जिन्होंने सुख-दुःखके बाह्य निमित्तोंको गौण कर खोटी चेष्टाओंका परित्याग कर दिया है ऐसे श्रेष्ठ विद्वानोंको निमित्त कारणोंमें तीव्र राग अथवा दोष नहीं करना चाहिए ॥३३।। गाढ़ अन्धकारके द्वारा आच्छादित मार्ग जब सूर्यके द्वारा प्रकाशित हो जाता है तब नेत्रवान् मनुष्य न तो पृथ्वीके गड्ढोंमें गिरता है; न पत्थरपर टकराता है और न सपं ही को प्राप्त होता है ।।३४।।
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविपेणाचार्यकथित पद्मपुराणमें हस्त-प्रहस्त और नल-नीलके पूर्वमवका वर्णन करनेवाला उनसठवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥५५॥
१. पुरः म.।
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