Book Title: Padmapuran Part 2
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 395
________________ षष्टितम पर्व ३७७ दशास्यस्त्रासितं वीक्ष्य निजं केसरिभिर्बलम् । समीपं चाञ्जनासूनुं कृतान्तमिव दुर्द्धरम् ॥४५।। चक्रे योद्धममिप्रायं यावत्संनाहतत्परः । तावन्महोदरोऽस्यान्ते संरम्भेण समुद्ययौ ॥४६॥ महोदरस्य च वातेश्च वर्तते यावदाहवः । तावत्ते हरयः प्राज्ञेहीताः स्वामिभिः शनैः ।।४७।। वशीभूतेपु सिंहेषु जाता संतो महारुषः । वायुपुत्रं समुत्पेतुः समस्ता राक्षसध्वजाः ॥४॥ तथाप्यनिलसू नुस्तान मुञ्चतः शरसंहतीः । दधार मण्डलीभूतान् पतत्रिसचिवैः कृती ।।४९|| ते शिलीमुखसंघाताः प्रहितास्तस्य राक्षसैः । संयतस्य यथाऽऽक्रोशा नाभवन्कम्पकारिणः ॥५०॥ रक्षोभिर्वेष्टितं दृष्ट्वा तैस्तमतिभूरिमिः । इमे वानरवीणाः समराय समुद्ययुः ॥५१॥ सुषेणो नलनीलौ च प्रीतिकरो विराधितः । संत्रासको हरिकटिः सूर्यज्योतिर्महाबलः ॥५२॥ जाम्बूनदसुताद्याश्च सिंहेभाश्वयुतः स्थैः । कृच्छाद्रावणसैन्यस्य निवारयितुमुद्यताः ॥५३॥ तैः समापति तैः सैन्यं दशग्रीवस्य सर्वतः । परीषहरिव ध्वस्तं महातुच्छतं व्रतम् ॥५४॥ आत्मीयानाकुलान् दृष्टा युयुत्सुं च दशाननम् । आदित्यश्रवणो यो मुद्गतो सुमहाबलः ॥५५।। दृष्ट्वा तमुद्गतं वीरं ज्वलन्तं रणतेजसा । सुषेणादीनिमे प्रापुः साधारयितुमाकुलाः ॥५६॥ "इन्दुरश्मिर्जयस्कन्दश्चन्द्राभो रतिवर्द्धनः । अङ्गोऽङ्गदोऽथ संमेदः कुमुदः शशिमण्डलः ॥५७।। बलिश्चण्डतरङ्गश्च सारो रत्नजटी जयः । बेलाक्षेपी वसन्तश्च तथा कोलाहलादयः ॥५॥ ततस्ते बहुबलत्वेन प्रवीराः पद्मपक्षिणः । लग्ना महाहवं कतु शत्रुसामन्तदुःसहम् ॥५९॥ ओर दौडा ॥४४॥ अपनी सेनाको सिंहोंके द्वारा त्रासित तथा यमराजके समान दधंर हनुमानको पास आया देख, कवच आदि धारण करनेमें तत्पर रावणने ज्योंही युद्धका विचार किया त्योंही उसके पास बैठा महोदर क्रोधपूर्वक उठ खड़ा हुआ ।।४५-४६।। इधर जबतक महोदर और हनुमान्का युद्ध होता है तबतक वे छूटे हुए सिंह धीरे-धीरे बुद्धिमान् स्वामियोंके द्वारा पकड़ लिये गये ॥४७|| सिंहोंके वशीभूत होनेपर जिनका तीन क्रोध बढ़ रहा था ऐसे समस्त राक्षस यद्यपि पवनपुत्रपर टूट पड़े ॥४८|| तथापि अतिशय कुशल हनुमान्ने, बाणसमूहको छोड़नेवाले उन समस्त राक्षसोंको बाणरूपी मन्त्रियोंके द्वारा रोक लिया ॥४९॥ जिस प्रकार दुर्जन मनुष्योंके द्वारा कहे हुए दुर्वचन संयमी मनुष्यके कम्पन उत्पन्न करनेवाले नहीं होते उसी प्रकार राक्षसोंके द्वारा छोड़े हुए बाणोंके समूह हनुमान्के कम्पन उत्पन्न करनेवाले नहीं हुए अर्थात् धीरवीर हनुमान, राक्षसोंके बाणोंसे कुछ भी विचलित नहीं हुआ ॥५०॥ तदनन्तर हनुमान्को बहुत-से राक्षसोंके द्वारा घिरा देख वानर पक्षके ये योद्धा युद्धके लिए उद्यत हुए।॥५१॥ सुषेण, नल, नील, प्रीतिकर, विराधित, सन्त्रासक, हरिकटि, सूर्यज्योति, महाबल और जाम्बूनदके पुत्र आदि। ये सब सिंह, हाथी और घोड़ोंसे जुते हुए रथोंपर सवार हो बड़ी कठिनाईसे रावणकी सेनाको रोकनेके लिए उद्यत हए ॥५२-५३|| जिस प्रकार किसी अत्यन्त तुच्छ पुरुषके द्वारा धारण किया हुआ व्रत परिषहोंके द्वारा ध्वस्त-नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है उसी प्रकार सब ओरसे आते हुए वानरपक्षके योद्धाओंसे रावणकी सेना ध्वस्त हो गयी ॥५४॥ अपने पक्षके लोगोंको व्याकुल देख रावण युद्ध करनेका अभिलाषी हुआ, सो उसे देख महाबलवान् भानुकर्ण (कम्भकर्ण) यद्ध करने के लिए उठा ॥५५॥ रणके तेजसे देदीप्यमान वीर भानुकर्णको उठा देख, ये लोग सुषेण आदिको सहारा देने के लिए पहुंचे ॥५६॥ चन्द्ररश्मि, जयस्कन्द, चन्द्राभ, रतिवर्धन, अंग, अंगद, सम्मेद, कुमुद, चन्द्रमण्डल, बलि, चण्डतरंग, सार, रत्नजटी, जय, बेलाक्षेपी, वसन्त, तथा कोलाहल आदि ।।५७-५८।। ये सब राम पक्षके अत्यन्त बलवान् योद्धा, ऐसा महायुद्ध करने १. सक्रोधेन म.। २. सूनोश्च म. ! ३. संवाहको हरिकोटिः म.। ४. इन्द्ररश्मि म. क.। ५. शत्रुणामतिदुःसहम् म.। २-४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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