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अष्टपञ्चाशत्तमं पर्व
सदर्निर्गतैर्योधैरस हैर्निजवर्गतः । दन्तुरोभूतमत्युग्रं बलद्वयमलक्ष्यत ॥ ३३ ॥ चक्रक्रकच कुन्तासिगदाशक्तिशिलीमुखैः । भिण्डिमालादिभिश्वोयं प्रवृत्तं युद्धमेतयोः ||३४|| ओह्वयन्तः सुसंनद्धाः शस्त्रज्वलितबाहवः । समुत्पेतुर्भटाः शूराः परसैन्यं विवक्षवः ||३५|| अतिवेगसमुत्पाताः प्रविष्टाः शात्रवं बलम् । शस्त्रसंचारमार्गार्थमवसस्रुः पुनर्मनाक् ॥ ३६ ॥ लङ्कानिवासिभिर्योधैरुद्गतैरतिभूरिभिः । सिंहवि गजा भङ्ग नीता वानरपक्षिणः ||३७|| पुनरन्यैर्भटैः शीघ्रमसीदन्तः समुज्ज्वलाः । रक्षोयोधान् विनिर्जघ्नुर्भासुरा वानरध्वजाः ॥ ३८ ॥ भेद्यमानं बलं दृष्ट्वा राक्षसेन्द्रस्य सर्वतः । स्वामिरागसमाकृष्टौ महाबलसमावृतौ ||३९|| गजध्वजसमाक्ष्यौ गजस्यन्दनवर्तिनौ । मा भैष्टेति कृतस्वानौ परमोत्कटविग्रहौ ||४०|| हस्तप्रहस्तसामन्तावुत्थाय सुमहाजवौ । निन्यतुः परमं भङ्गं बलं वानरलक्ष्मणाम् ||४१॥ शाखामृगध्वजौ तावत्प्रतापं बिभ्रतौ परम् । क्रोडवारणसंवृत्तवाहव्यूढमहारथौ ||४२ || शौर्य गर्वाववायुक्तशरीरौ परमद्युती । नलनीलौ परिक्रुद्धौ भीषणो योद्धुमुद्यतौ ॥४३॥ ततो बहुविधैः शस्त्रैश्वरं जाते महाहवे । क्रमाप्तसाधुनिस्वाने निपतद्भटसंकटे ||४४|| नलेनोत्पत्य हस्तो वा विह्वलो विश्वीकृतः । प्रहस्त इव नीलेन कृतश्च गतजीवितः ||४५ || तावालोक्य ततो राजन् विपर्यस्तौ महीतले । विनायका बभूवैतद्वाहिनीयं पराङ्मुखा ॥४६॥
शोषणको प्राप्त होने लगा ||३२|| अपने-अपने वर्ग से निकलकर बाहर आये हुए, असहनशील, अहंकारी योद्धाओं से व्याप्त हुईं दोनों सेनाएँ अत्यन्त भयंकर दिखने लगीं ||३३|| कुछ ही समय बाद दोनों सेनाओं में चक्र, क्रकच, कुन्त, खड्ग, गदा, शक्ति, बाण और भिण्डिमाल आदि शस्त्रोंसे भयंकर युद्ध होने लगा ||३४|| जो एक दूसरेको बुला रहे थे, जो कवचोंसे युक्त थे, जिनकी भुजाएँ शस्त्रोंसे देदीप्यमान हो रही थीं और जो पर-चक्रमें प्रवेश करना चाहते थे ऐसे शूरवीर योद्धा उछल रहे थे ||३५|| ये योद्धा अत्यन्त वेगसे उछलकर पहले तो शत्रुओंके दलमें जा चुके अनन्तर शस्त्र चलाने के योग्य मार्ग प्राप्त करनेकी इच्छासे पुनः कुछ पीछे हट गये || ३६ || लंका निवासी योद्धा अधिक संख्या में थे तथा अत्यधिक शक्तिशाली थे इसलिए उन्होंने वानर-पक्ष के योद्धाओंको उस तरह पराजित कर दिया जिस तरह कि सिंह हाथियों को पराजित कर देते हैं ||३७|| तदनन्तर शीघ्र ही जो अन्य योद्धाओंके द्वारा नहीं दबाये जा सकते थे ऐसे प्रतापी तथा देदीप्यमान वानर राजाओंने राक्षस योद्धाओंको मारना शुरू किया ||३८|| तत्पश्चात् रावणकी सेनाको सब ओरसे नष्ट होती देख स्वामीके प्रेमसे खिंचे तथा बड़ी भारी सेनासे घिरे हस्त और प्रहस्त नामक सामन्त उठकर आगे आये । ये हाथी के चिह्नसे सुशोभित ध्वजासे पृथक् ही जान पड़ते थे, हाथियों के रथपर आरूढ़ थे, 'डरो मत, डरो मत' यह शब्द कर रहे थे, अत्यन्त उत्कृष्ट शरीरके धारक थे और महावेगशाली थे । इन्होंने आते ही वानरोंकी सेनामें तीव्र मार-काट मचा दी ||३९-४१ ॥ यह देख जो परम प्रतापको धारण कर रहे थे, सूकर, हाथी तथा घोड़े जिनके बड़े-बड़े रथ खींच रहे थे, जो शरीरधारी शूरवीरता और गर्वके समान जान पड़ते थे, परमदीप्तिके धारक थे, अत्यन्त क्रुद्ध एवं भयंकर थे, ऐसे वानरवंशी नल और नील युद्ध करनेके लिए उद्यत हुए ||४२-४३॥
तदनन्तर जिसमें क्रम-क्रम से साधु-साधु बहुत अच्छा बहुत अच्छाका शब्द हो रहा था तथा जो गिरते हुए योद्धाओंसे व्याप्त था ऐसा महायुद्ध जब चिरकाल तक नाना प्रकारके शस्त्रोंसे हो चुका तब नलने उछलकर हस्तको रथ रहित तथा विह्वल कर दिया और नीलने प्रहस्तको निर्जीव बना दिया ॥४४-४५॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि हे राजन् ! तदनन्तर हस्त और प्रहस्तको
१. आहूयन्त: ( ? ) . म.
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