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पद्मपुराणे
एते वाजियुतैः कान्तैर्मनोरथजवै रथैः । महासैनिकमध्यस्थैरध्यासत रणाजिरम् ||१७|| विद्युद्वाहो मरुद्वाहुः सानुर्जलदवाहनः । रवियानः प्रचण्डालिरिमेऽपि धनसंनिभैः ॥ १८ ॥ महारथवरैर्नानादाहनोद्भासिताम्बरैः । युद्धश्रद्धासमायुक्ता दधावुर्मारुतैः समाः ॥ १९॥ विमानमुत्तमाकारं नाम्ना रत्नप्रभं महत् । आरूढो यत्नवानस्थात् पद्मपक्षो विभीषणः ॥ २० ॥ युद्धावर्ती वसन्तश्च कान्तः कौमुदिनन्दनः । भूरिः कोलाहलो हेडो भावितः साधुवत्सलः ||२१| अर्द्धचन्द्रो जिनप्रेमा सागरः सागरोपमः । मनोज्ञो जिनसंज्ञश्च तथा जिनमतादयः ॥ २२ ॥ नानावर्ण विमानात्र भूमिकास्थितमूर्तयः । दुर्द्धरा निर्ययुर्योदधुं बद्धसंनाहविग्रहाः ||२३|| पद्मनाभः सुमित्राजः सुग्रीवो जनकात्मजः । एते हंसविमानस्था विरेजुर्गगनान्तरे ॥ २४॥ महाम्बुदप्रतीकाशा नानायानसमाश्रिताः । लङ्काभिमुखमुद्यक्ता गन्तं खेचरपार्थिवाः ||२५|| 'संघारलम्बिताम्भोदवृन्दनिर्दोष भैरवाः । शङ्खकोटिस्वनोन्मिश्रास्तूर्याणामुद्ययुः स्वनाः ||२६|| मम्भाभेर्यो मृदङ्गाश्च लम्क्षका धुन्धुमण्डुकाः । झम्ला म्लातकहक्काश्च हुङ्कारा दुन्दु काणकाः ||२७|| झर्झरा हेतुगुज्जाच काहला दर्दुरादयः । समाहता महानादं मुमुचुः कर्णचूर्णकम् ॥२८॥ वेणुनादाहामा ताराहलहलारवाः । ययुः सिंहद्विपस्वाना महिषस्यन्दनस्वनाः ||२९|| क्रमेलकमहारावा निनादा मृगपक्षिणाम् । उत्तस्थुः पिहिताशेषाशेषविष्टपनिःस्वनाः ॥ ३० ॥ तयोरन्योन्यमासंगे जाते परमसैन्ययोः । लोकः संशयमारूढः समस्तो जीवितं प्रति ॥३१॥ क्षोणी क्षोभं परं प्राप्ता विकम्पितमहीधरा । प्रशोषं गन्तुमारब्धः प्रक्षुब्धः 'क्षारसागरः ॥ ३२ ॥
वाहन,
नक्षत्रमालक, क्षोद तथा अतिविजय आदि घोड़ोंसे जुते मनोहर, इच्छानुसार वेगवाले, तथा महासैनिकों के मध्य स्थित रथोंपर सवार हो रणांगण में पहुँचे ॥१२- १७॥ विद्युद्वाह, मरुद्वाहु, सानु, मेघरवियान और प्रचण्डालि ये सब सामन्त भी मेघोंके समान नाना प्रकारके वाहनोंसे आकाशको देदीप्यमान करनेवाले उत्तमोत्तम रथोंपर सवार हो युद्धको अभिलाषासे दोड़े ! ये सब वायुके समान तीव्र वेगवाले थे ||१८-१९ || जिसे रामकी पक्ष थी ऐसा यत्नवान् विभीषण रत्नप्रभ नामक उत्तम विमानपर आरूढ़ हुआ ||२०|| युद्धावतं वसन्त, कान्त कौमुदि नन्दन, भूरि, कोलाहल, हेड, भावित, साधुवत्सल, अर्द्धचन्द्र, जिन प्रेमा, सागर, सागरोपम, मनोज्ञ, जिनसंज्ञ तथा जिनमत आदि यो युद्ध करने के लिए बाहर निकले । ये सब नाना वर्णोंवाले विमानोंकी अग्रभूमिमें स्थित थे, दुर्धर थे और सबके शरीर कवचोंसे कसे हुए थे । २१ - २३॥ पद्मनाभ - राम, लक्ष्मण, सुग्रीव और भामण्डल ये सब हंसोंके विमानोंमें बैठे हुए आकाशके बीच में अत्यधिक सुशोभित हो रहे थे ||२४|| जो महामेघ के समान जान पड़ते थे तथा नाना प्रकार के वाहनोंपर आरूढ़ थे, ऐसे विद्याधर राजा लंका की ओर जाने के लिए तत्पर हुए ।। २५ ।। प्रलयकालीन घनघटाकी गर्जनाके समान जिनके भयंकर शत्रु थे, तथा जो करोड़ों शंखों के शब्द से मिले हुए थे ऐसे तुरही वादित्रोंके शब्द उत्पन्न होने लगे ॥२६॥ भंभा, भेरी, मृदंग, लम्पाक, धुन्धु, मण्डुक, झम्ला, अम्लातक, हक्का, हुंकार, दुन्दुकाणक, झर्झर, हेतुगंजा, काहल और दर्दुर आदि बाजे ताड़ित होकर कानों को घुमानेवाले महाशब्द छोड़ने लगे ।।२७-२८।। बाँसोंके शब्द, अट्टहासकी ध्वनि, तारा तथा हलहला के शब्द, सिंहों और हाथियोंके शब्द, भैंसाओं और रथोंके शब्द, ऊँटोंके विशाल शब्द तथा मृग और पक्षियोंके शब्द उठने लगे। इन सबके शब्दोंने शेष समस्त संसारके शब्दों को आच्छादित कर दिया ।। २९-३०।। जब उन दोनों विशाल सेनाओं का परस्पर में समागम हुआ तब समस्त लोक अपने जीवनके प्रति संशय में पड़ गये ||३१|| पृथिवी अत्यन्त क्षोभको प्राप्त हुई, पर्वत हिलने लगे और क्षुभित हुआ लवण समुद्र
१. कौमुदनन्दनः म । २. प्रलय म । ३ घूर्णनम् म । ४. लवणसमुद्रः ।
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