Book Title: Padmapuran Part 2
Author(s): Dravishenacharya, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 375
________________ पञ्चपञ्चाशत्तमं पर्व ३५७ सूर्योदयामृताभिख्याः शोभासिंहपुराभिधाः । नृत्यगीतपुरालक्ष्मीकिन्नरस्वनसंज्ञकाः ॥४५॥ बहुनादा महाशैलाश्चक्राहाः सुरनूपुराः। श्रीमन्तो मलयानन्दाः श्रीगुहा श्रीमनोहराः ॥८६॥ रिपुञ्जयाः शशिस्थानाः मार्तण्डाभविशालकाः । ज्योतिर्दण्डाः परिक्षोदा अश्वरत्नपराजयाः ।।८।। एवमाद्याः पुराभिख्याः महाखेचरपार्थिवाः । सचिवैरन्विताः प्रीता दशाननमुपागताः ॥८॥ अस्त्रवाहनसंनाहप्रभृतिप्रतिपत्तिमिः । रावणोऽपूजयद्भपान्'सुत्रामा त्रिदशानिव ॥८९॥ अक्षौहिणीसहस्राणि चत्वारि त्रिककुप प्रमोः। स्वशक्तिजनितं प्रोक्तं बलस्य प्रमितं बुधैः ॥१०॥ एकमक्षौहिणीनां तु किष्किन्धनगरप्रभोः । सहस्रं सागमेकं तु भामण्डलविमोरपि ॥११॥ सुग्रीवः सचिवैः साकं तथा पुष्पवतीसुतः । आवृत्य परमोद्युक्तौ तस्थतुः पद्मलक्ष्मणौ ॥९२।। अनेकगोत्रचरणा नानाजात्युपलक्षणाः । नानागुणक्रियाख्याता नानाशब्दा नमश्चराः ॥१३॥ पुण्यानुभावेन महानराणां भवन्ति शत्रोरपि पार्थिवाः स्वाः । कुपुण्यभाजां तु चिरं सुशक्ता विनाशकाले परतां भजन्ते ॥१४॥ भ्राता ममायं सुहृदेष वश्यो ममैष बन्धुः सुखदः सदेति । संसारवैचिच्यविदा नरेग नैतन्मनीषारविणा विचिन्त्या ॥१५॥ इत्या रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे विभीषणसमागमाभिधानं नाम पञ्चपञ्चाशत्तमं पर्व ॥५५।। गन्धर्वगीतनगर, कम्पनपुर, शिवमन्दिरपुर, सूर्योदयपुर, अमृत, शोभापुर, सिंहपुर, नृत्यगीतपुर, लक्ष्मीगीतपुर, किन्नरगीतपुर, बहुनादपुर, महाशैलपुर, चक्रपुर, सुरनूपुर, श्रीमन्तपुर, मलयानन्दपुर, श्रीगुहापुर, श्रीमनोहरपुर, रिपुंजयपुर, शशिस्थानपुर, मार्तण्डाभपुर, विशालपुर, ज्योतिर्दण्डपुर, परिक्षोदपुर, अश्वपुर, रत्नपुर और पराजयपुर आदि अनेक नगरोंके बड़े-बड़े विद्याधर राजा, प्रसन्न हो, अपने-अपने मन्त्रियोंके साथ रावणके समीप आ गये ।।८४-८८|| रावणने अस्त्र, वाहन तथा कवच आदि देकर उन सब राजाओंका उस तरह सम्मान किया जिस तरह कि इन्द्र देवोंका सम्मान करता है ।।८९॥ विद्वानोंने रावणकी सेनाका प्रमाण चार हजार अक्षौहिणी दल बतलाया है। उनका यह दल अपनी सामयंसे परिपूर्ण था ।।९०॥ किष्किन्धनगरके राजा सुग्रीवकी सेनाका प्रमाण एक हजार अक्षौहिणी और भामण्डलकी सेनाका प्रमाण कुछ अधिक एक हजार अक्षौहिणी दल था ॥९१|| परम उद्योगी सदा सावधान रहनेवाले सुग्रीव और भामण्डल, अपने-अपने मन्त्रियोंके साथ सदा राम-लक्ष्मणके समीप रहते थे ।।९२|| उस समय युद्ध-भूमिमें नानावंश, नानाजातियाँ, नानागुण तथा नानाक्रियाओंसे प्रसिद्ध एवं नानाप्रकारके शब्दोंका उच्चारण करनेवाले विद्याधर एकत्रित हुए थे ।।९३|गौतमस्वामी कहते हैं कि हे राजन् ! पुण्यके प्रभावसे महापुरुषोंके शत्रु राजा भी आत्मीय हो जाते हैं और पुण्यहीन मनुष्योंके चिरकालीन मित्र भी विनाशके समय पर हो जाते हैं ।।९४॥ यह मेरा भाई है, यह मेरा मित्र है, यह मेरे आधीन है, यह मेरा बन्धु है और यह मेरा सदा सुख देनेवाला है, इस प्रकार बुद्धिरूपी सूर्यसे सहित तथा संसारकी विचित्रताको जाननेवाले मनुष्यको कभी नहीं विचारना चाहिए ||९५।। इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराणमें विभीषणके समागमका वर्णन करनेवाला पचपनवाँ पर्व पूर्ण हआ ॥५५।। १. भूयः मः । २ परमोद्युक्तरतस्थतुः म. । ३. स्वशक्ताः म. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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