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षट्पञ्चाशत्तमं पर्व
मगधेन्द्रस्ततोऽपृच्छत् पुनरेवं गणेश्वरम् । अक्षौहिण्याः प्रमाणं मे वक्तुमर्हसि संमुने ॥१॥ शक्रभूतिरथागादीच्छृणु श्रेणिक पार्थिव । अक्षौहिण्याः प्रमाणं ते संक्षेपेण वदाम्यहम् ||२|| अष्टाविमे गताः ख्यातिं प्रकारा गणनाकृताः । चतुणां भेदमङ्गानां कीर्त्यमानं विबोध्यताम् ॥३॥ पत्तिः प्रथमभेदोऽत्र तथा सेना प्रकीर्तिता । सेनामुखं ततो गुल्मं वाहिनी पृतना चमूः ||४|| अष्टमोऽनीकिनीसंज्ञस्तत्र भेदो बुधैः स्मृतः । यथा भवन्त्यमी भेदास्तथेदानीं वदामि ते ॥५॥ एको रथो गजचैकस्तथा पञ्च पदातयः । त्रयस्तुरङ्गमाः सैषा पत्तिरित्यभिधीयते ॥ ६ ॥ पत्तित्रिगुणिता सेना तिस्रः सेनामुखं च ताः । सेनामुखानि च त्रीणि गुल्ममित्यनुकीर्त्यते ||७| वाहिनी त्रीणि गुल्मानि पृतना वाहिनीत्रयम् । चमूत्रिपृतना ज्ञेया चमूत्रयमनीकिनी ॥ ८ ॥ अनीकिन्यो दश प्रोक्ता प्राज्ञैरक्षोहिणोति सा । तत्राङ्गानां पृथक् संख्यां चतुर्णां कथयामि ते ॥ ९ ॥ अक्षौहिण्यां प्रकीर्त्यानि रथानां सूर्यवर्चसाम्। एकविंशतिसंख्यानि सहस्राणि विचक्षणः ॥१०॥ अष्टौ शतानि सप्तत्या सहितान्यपराणि च । गजानां कथितं ज्ञेयं संख्यानं रथसंख्यया ॥ ११ ॥ एकलक्षं सहस्राणि नव, पञ्चाशदन्वितम् । शतत्रयं च विज्ञेयमक्षौहिण्याः पदातयः ॥ १२ ॥ पञ्चषष्टिसहस्राणि षट्शती च दशोत्तरा । अक्षौहिण्यामियं संख्यां वाजिनां परिकीर्तिता ॥ १३ ॥ एवं संख्यबलोपेतं विज्ञायापि दशाननम् । बलं कैष्किन्धमभ्यार तं भयेन विवर्जितम् ॥१४ ॥ तस्मिन्नासन्नतां प्राप्ते पद्मनाभप्रभोर्बले । जनानामित्यभूद्वाणी 'नानापक्षगतात्मनाम् ॥१५॥
अथानन्तरमगत्रपति राजा श्रेणिकने गौतम गणधरसे इस प्रकार पूछा कि हे सन्मुने! मेरे लिए अक्षौहिणीका प्रमाण कहिए || १ || इसके उत्तरमें इन्द्रभूति - गौतम गणधरने कहा कि हे राजन् श्रेणिक ! सुन, मैं तेरे लिए संक्षेपसे अक्षौहिणी प्रमाण कहता हूँ ॥२॥ हाथी, घोड़ा, रथ और पयादे ये सेनाके चार अंग कहे गये हैं । इनकी गणना करनेके लिए नीचे लिखे आठ भेद प्रसिद्ध हैं ||३| प्रथम भेद पत्ति, दूसरा सेना, तीसरा सेनामुख, चौथा गुल्म, पाँचवाँ वाहिनी, छठा पृतना, सातवाँ चमू और आठवीं अनीकिनी । अब उक्त चार अंगों में ये जिस प्रकार होते हैं उनका कथन करता हूँ || ४ - ५ || जिसमें एक रथ, एक हाथी, पाँच पयादे और तीन घोड़े होते हैं वह पत्ति कहलाता है ||६|| तीन पत्तिकी एक सेना होती है, तीन सेनाओंका एक सेनामुख होता है, तीन सेनामुखों का एक गुल्म कहलाता है ||७|| तीन गुल्मोंकी एक वाहिनी होती है, तीन वाहिनियोंकी एक पृतना होती है, तीन पृतनाओं की एक चमू होती है और तीन चमूकी एक अनीकिनी होती है ||८|| विद्वानोंने दस अनीकिनीकी एक अक्षोहिणी कही है । हे श्रेणिक ! अब मैं तेरे लिए अक्षौहिणीके चारों अंगों की पृथक्-पृथक् संख्या कहता हूँ || ९ || विद्वानोंने एक अक्षोहिणी में सूर्यके समान देदीप्यमान रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर बतलायी है। हाथियोंकी संख्या रथोंकी संख्या के समान जानना चाहिए ||१०- ११॥ पदाति एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास होते हैं और घोड़ों की संख्या पैंसठ हजार छह सौ दस कही गयी है ।। १२-१३।। इस प्रकार चार हजार अक्षौहिणी रावण के पास थीं । सो इस प्रकारकी सेना से सहित रावणको अतिशय बलवान् जानकर भी किष्किन्धपति - सुग्रीव की सेना निर्भय होकर रावण के सम्मुख चली || १४ || जब रामकी सेना निकट आयो तब नाना पक्षमें विभक्त लोगों में इस प्रकारकी चर्चा होने लगी ॥ १५ ॥
१. नानापक्षागतात्मनां म ।
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