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त्रिपञ्चाशत्तम पर्व
मालिनीवृत्तम् इति सुविहितवृत्ताः पूर्वजन्मन्युदाराः सकलभुवनरोधि'व्याप्यकीर्तिप्रधानाः। अभिसरपरिमुक्ताः कर्म तस्कर्तुमीशाः जनयति परमं तद्विस्मयं दुर्विचिन्त्यम् ।।२७३॥ भजत सुकृतसंगं तेन निर्मुच्य सर्व विरसफलविधायि क्षुद्रकर्म प्रयत्नात् ।
भवत परमसौख्यास्वादलोमप्रसक्ताः परिजितरविभासो जन्तवः कान्तलीलाः ॥२७॥ इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे हनुमत्प्रत्यभिगमनं नाम त्रिपञ्चाशत्तमं पर्व ॥५३।।
यह कहा कि हे पवन पुत्र ! समस्त ग्रह तेरे लिए सुखदायक हों तथा तू विघ्नोंको नष्ट कर भोग युक्त होता हुआ चिरकाल तक जीवित रह ।।२७२।। गौतम स्वामी कहते हैं कि हे राजन् ! जिन्होंने पूर्वजन्ममें उत्तम आचरण किया है, जो उदार है, तथा जिनको कोतिका समूह समस्त संसारमें व्याप्त है ऐसे मनुष्य परिभ्रमणसे रहित हो वह कर्म करनेके लिए समर्थ होते हैं जो कि बहुत भारा आचन्तनीय आश्चर्य उत्पन्न करता है ॥२७३|| इसलिए नीरस फल देनेवाले समस्त क्षुद्र कर्मको प्रयत्न पूर्वक छोड़ कर एक पुण्यका हो समागम प्राप्त करो जिससे परम सुखके आस्वादके लोभी हो, पुरुष अपनी प्रभासे सूर्यको प्रभाको जीतनेवाला एवं मनोहर लीलाओंका धारक होता है ॥२७४।।
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्यकथित पद्मपुराणमें हनुमानके लौटने
आदिका वर्णन करनेवाला तिरपनवाँ पर्व समाप्त हआ ॥५३॥
१. बोधिश्लाघ्या-म.।
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